प्रयागराज । पहली बार अनुसूचित जाति के किसी संत को ‘जगदगुरु’ की उपाधि प्रदान की गई है। देश के 13 अखाड़ों में से एक जूना अखाड़े ने महामंडलेश्वर महेंद्रानंद गिरि को यह उपाधि प्रदान की। महेंद्रानंद के शिष्य कैलाशानंद गिरि को महामंडलेश्वर और राम गिरि को श्री महंत की उपाधि दी गई।
ये दोनों संत भी अनुसूचित जाति से हैं। इन संतों को सोमवार को प्रयागराज में जूना अखाड़े के सिद्ध बाबा मौज गिरी आश्रम में मंत्रोच्चार के बीच दीक्षा दी गई। स्वामी महेंद्रानंद मूल रूप से गुजरात के सौराष्ट्र राजकोट जिले के बनाला गांव के रहने वाले हैं।
तीनों संत मूल रूप से गुजरात के रहने वाले हैं। इस मौके पर जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष काशी सुमेरु पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती के साथ श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर श्री महंत प्रेम गिरि, जूना अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता श्री महंत नारायण गिरि, महामंडलेश्वर वैभव गिरि ने उपाधि प्राप्त करने वाले संतों को माला पहनाई।
समारोह के दौरान महेंद्रानंद और कैलाशानंद को सिंहासन पर बैठाया गया और छतरियां भेंट की गईं। श्री महंत प्रेम गिरि ने कहा, जूना अखाड़ा संन्यासी परंपरा में जाति और वर्ग भेदभाव को खत्म करने की दिशा में काम कर रहा है। अन्य धर्मों द्वारा हिंदुओं के बीच मतभेद पैदा कर धर्मांतरण की प्रक्रिया को रोकने के लिए इस परंपरा को और समृद्ध करने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि महाकुंभ-2025 से पहले इसी दिशा में महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए अनुसूचित जाति के संतों को जगद्गुरु, महामंडलेश्वर और श्री महंत जैसी महत्वपूर्ण उपाधियों से सम्मानित किया जा रहा है।
उपाधि प्रदान करने के बाद सभी ने संगम में डुबकी लगाई और नगर देवता भगवान वेणी माधव के दर्शन किए। जगद्गुरु स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि जूना अखाड़े का निर्णय प्रेरणादायक है और जगद्गुरु की उपाधि मिलने के बाद सनातन धर्म के प्रति श्रद्धा और समर्पण बढ़ा है।
2021 में हरिद्वार कुंभ में जूना अखाड़े ने महेंद्रानंद को महामंडलेश्वर की उपाधि दी। स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती ने कहा, जूना अखाड़ा भगवान श्रीराम के दिखाए सामाजिक समरसता के मार्ग पर चल रहा है। महामंडलेश्वर कैलाशानंद ने उन अनुसूचित जाति के लोगों को सनातन धर्म में जोड़ने का संकल्प लिया, जो धर्मांतरित हो गए हैं।