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आज नवरात्र का पहला दिन है और इस दिन घटस्थापन के बाद मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री का पूजन, अर्चन और स्तवन किया जाता है। शैल का अर्थ है हिमालय और पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। पार्वती के रूप में इन्हें भगवान् शंकर की पत्नी के रूप में भी जाना जाता है। वृषभ (बैल) इनका वाहन होने के कारण इन्हें वृषभारूढा के नाम से भी जाना जाता है। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में इन्होंने कमल धारण किया हुआ है।
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Maa Shailputri : शैलपुत्री देवी स्तोत्र पाठ
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प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन।
मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
Maa Shailputri : मां शैलपुत्री के प्रभावशाली मंत्र
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ऊँ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥ वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
Maa Shailputri : मां शैलपुत्री की कथा
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पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार प्रजापति दक्ष ने अपने घर पर यज्ञ का आयोजन करने का सोचा तो उन्होंने सभी देवी-देवताओं को अपने यहां आने का निमंत्रण भेज दिया, लेकिन राजा दक्ष ने भगवान शिव को नहीं बुलाया। देवी सती को लगा था कि उन्हें भी बुलावा भेजा जाएगा। परंतु उनके यहां यज्ञ में आने का निमंत्रण नहीं आया। फिर भी देवी सती को उस यज्ञ में जाने का मन हुआ, लेकिन शिवजी ने उन्हें मना कर दिया। शिवजी ने सती को बोला कि अभी उनके पास यज्ञ में जाने के लिए कोई निमंत्रण नहीं आया है इसलिए वहां जाना ठीक नहीं होगा। फिर भी देवी सती ने उनकी बात नहीं मानीं। बार-बार यज्ञ में जाने का आग्रह करने के कारण भगवान शिव ने उन्हें जाने की अनुमति दे दी।
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फिर देवी सती जब अपने पिता राजा दक्ष के यहां पहुंची तो जाकर उन्होंने देखा कि अपने पिता के यहां कोई भी उनसे सम्मान और प्रेम के साथ बात नहीं कर रहा था। वहीं देवी सती की अन्य बहनें भी उनका तथा शिवजी का मजाक उड़ा रहीं थीं। स्वयं देवी सती जे पिता प्रजापति दक्ष ने भी सती का अपमान करने का मौका नहीं छोड़ा। इस प्रकार वहां मौजूद सभी लोग सती के साथ रूखा व्यवहार कर रहे थे लेकिन जब सती जी की माता ने अपनी बेटी को देखा तो प्यार से गले लगा लिया। परंतु अन्य सभी का ऐसा व्यवहार देखकर सती बहुत ही दुखी हो गईं। तब अपना और अपने पति शिवजी का अपमान उनसे सहन न हुआ।
इसके बाद इस अपमान से अत्यंत दुखी होकर सती ने उसी समय वहां यज्ञ की अग्नि में कूदकर स्वयं के प्राण त्याग दिए। जैसे ही भगवान भोलेनाथ को इस बात की जानकारी हुई तो वे भी बहुत दुखी हो गए। इसके बाद दुखी भगवान शिव क्रोध से आगबबूला होते हुए राजा दक्ष के यहां गए और तुरंत यज्ञ को ध्वस्त कर दिया। मान्यता है कि इसी सती ने फिर हिमालय की पुत्री शैलपुत्री के रूप में जन्म लिया।
Maa Shailputri : माँ शैलपुत्री की आरती
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मां शैलपुत्री की आरती शैलपुत्री मां बैल पर सवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।