Himachal Pradesh Temple: 1 ऐसी रहस्यमयी ज्वाला जिसके आगे हार गए अकबर और अंग्रेज….
ज्वाला देवी की ज्वाला का रहस्य, धर्म या विज्ञान
( PUBLISHED BY – SEEMA UPADHYAY )
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Himachal Pradesh Temple : मां भगवती के 51 शक्तिपीठों में से एक ज्वालामुखी मंदिर काफी प्रसिद्ध है। इस मंदिर जोता वाली मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान पर माता सती की जीभ गिरी थी। यहां माता ज्वाला के रूप में विराजमान हैं और भगवान शिव यहां उन्मत भैरव के रूप में स्थित हैं। Himachal Pradesh Temple इस मदिर का चमत्कार यह है कि यहां कोई मूर्ति नहीं है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रहीं 9 ज्वालों की पूजा की जाती है।
आजतक इसका कोई रहस्य नहीं जान पाया है कि आखिर यह ज्वाला यहां से कैसे निकल रही है। कई भू-वैज्ञानिक ने कई किमी की खुदाई करने के बाद भी यह पता नहीं लगा सके कि यह प्राकृतिक गैस कहां से निकल रही है। साथ ही आजतक कोई भी इस ज्वाला को बुझा भी नहीं पाया है। आइए जानते हैं ज्वाला देवी की ज्वाला का रहस्य क्या है, इसके पीछे धार्मिक या वैज्ञानिक मन्यताएं क्या हैं…
यह हैं मां की 9 ज्वाला का अद्भुत स्वरूप
ज्वाला देवी मंदिर में बिना तेल और बाती के नौ ज्वालाएं जल रही हैं, जो माता के 9 स्वरूपों का प्रतीक हैं। मंदिर एक सबसे बड़ी ज्वाला जो जल रही है, Himachal Pradesh Temple वह ज्वाला माता हैं और अन्य आठ ज्वालाओं के रूप में मां मां अन्नपूर्णा, मां विध्यवासिनी, मां चण्डी देवी, मां महालक्ष्मी, मां हिंगलाज माता, देवी मां सरस्वती, मां अम्बिका देवी एवं मां अंजी देवी हैं।
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ब्रिटिश साम्राज्य में की गई थी ऐसी कोशिश
मां ज्वाला देवी के मंदिर का निर्माण सबसे पहले राजा भूमि चंद ने करवाया था। इसके बाद 1835 में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसार चंद ने इसका पुननिर्माण करवाया था। Himachal Pradesh Temple ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान मंदिर की ज्वाला जानने के लिए जमीन के नीचे दबी ऊर्जा का पता लगाने के लिए काफी कोशिश की गई लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगा।
भूगर्भ वैज्ञानिक भी पहुंचे थे मंदिर
आजादी के बाद भी कई भूगर्भ वैज्ञानिक भी तंबू गाड़कर बैठ ज्वाला की जड़ तक पता लगाने के लिए बैठ गए थे लेकिन उनको भी कोई जानकारी नहीं मिली। यह बातें सिद्ध करती हैं कि यह चमत्कारिक ज्वाला है। मंदिर से निकलती ज्वाला का रहस्य आज भी बना हुआ है।
मंदिर को लेकर है एक पौराणिक कथा
ज्वाला देवी की ज्वाला से संबंधित एक पौराणिक कथा भी है। कथा के अनुसार, भक्त गोरखनाथ मां ज्वाला देवी के बहुत बड़े भक्त थे और हमेशा भक्ति में लीन रहते थे। Himachal Pradesh Temple एकबार भूख लगने पर गोरखनाथ ने मां से कहा कि मां आप पानी गर्म करके रखें तब तक मैं मीक्षा मांगकर आता हूं। जब गोरखनाथ मिक्षा लेने गए तो वापस लौटकर नहीं आया।
मान्यता है कि यह वही ज्वाला है जो मां ने जलाई थी और कुछ ही दूरी पर बने कुंड के पानी से भाप निकलती प्रतित होती है। इस कुंड को गोरखनाथ की डिब्बी भी कहा जाता है। मान्यता है कि कलयुग के अंत में गोरखनाथ मंदिर वापस लौटकर आएंगे और तब तक ज्वाला जलती रहेगी।
अकबर ने ज्वाला बुझाने की थी कोशिश
बादशाह अकबर ने मंदिर की ज्वाला के बारे में सुना तो उसने अपनी सेना बुलाकर इस ज्वाला को बुझाने के लिए कई बार कोशिश की लेकिन कोई भी मंदिर की ज्वालाओं को बुझा नहीं पाया। फिर उसने नहर तक की खुदाई करवाने की कोशिश की लेकिन नाकामयाब रहा। नहर मंदिर की बायीं ओर देखने को मिल जाएगी।
बाद में वह मां के इस चमत्कार को देखकर नतमस्तक हो गया और सवा मन के सोने का छत्र चढ़ाने पहुंचा लेकिन माता ने उसे स्वीकार नहीं किया और वह गिरकर किसी अन्य धातु में बदल गया। Himachal Pradesh Temple यह धातु कौन सा है इसका आजतक किसी को पता नहीं चला।
हर इच्छा होती है मां के दरबार में पूरी
ज्वाला माता के मंदिर को लेकर ध्यानू भगत की कहानी भी प्रसिद्ध है। कथा के अनुसार, ध्यानू भगत ने अपनी भक्ति सिद्ध करने के लिए अपना शीश मां को चढ़ा दिया था। मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से मां से जो भी मांगता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है। कोई भी मां के दरबार से खाली नहीं जाता।
कैसे पहुंचे ज्वालादेवी मंदिर ?
वायु मार्ग
ज्वालाजी मंदिर का निकटतम हवाई अड्डा गग्गल में है जो ज्वालाजी से 46 किमी दूर है। की दूरी पर स्थित है। वहां से आप कार और बस से मंदिर पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग
रेल से यात्रा करने वाले यात्री पठानकोट से स्पेशल ट्रेन से मरांडा होते हुए पालमपुर पहुंच सकते हैं. पालमपुर से मंदिर के लिए बस और ऑटो की सुविधा उपलब्ध है।
सड़क मार्ग
पठानकोट, दिल्ली, शिमला आदि प्रमुख शहरों से ज्वालामुखी मंदिर के लिए बस और ऑटो की सुविधा उपलब्ध है। Himachal Pradesh Temple इसके अलावा यात्री अपने निजी वाहन और हिमाचल प्रदेश पर्यटन विभाग की बस से भी वहां पहुंच सकते हैं।
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