Khatu Shyam Ji: ऐसे बने खाटू श्याम भगवान..
Khatu Shyam Ji : यूं हीं नहीं कहते हारे का सहारा बाबा खाटू श्याम हमारा, ऐसे बने खाटू श्याम भगवान
( PUBLISHED BY – SEEMA UPADHYAY )
खाटू श्याम को भगवान श्री कृष्ण का कलयुगी अवतार कहा जाता है। इस कहावत के पीछे एक पौराणिक कथा है। उनका भव्य मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है जहां हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। लोगों का मानना है कि बाबा श्याम सबकी मनोकामना पूरी करते हैं और रंका को राजा भी बना सकते हैं।
कौन हैं बाबा खाटू श्याम
बाबा खाटू श्याम का संबंध महाभारत काल से माना जाता है। वह पांडुपुत्र भीम के पोते थे। किवदंती है कि खाटू श्याम की अपार शक्ति और क्षमता से प्रभावित होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें कलियुग में उनके नाम से पूजे जाने का वरदान दिया था।
खाटू श्याम की कथा
लाक्षागृह की घटना में वन में भटक रहे पांडवों की जान बचाकर हिडिम्बा नामक राक्षस से भेंट हो गई। वह भीम को पति के रूप में पाना चाहती थी। माता कुंती की आज्ञा से भीम और हिडिम्बा का विवाह हुआ, जिससे घटोत्कच का जन्म हुआ। घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक था जो अपने पिता से भी अधिक बलशाली और मायावी था।
बर्बरीक देवी के उपासक थे। देवी के वरदान से उन्हें तीन दिव्य बाण प्राप्त हुए थे जो उनके लक्ष्य को भेदते हुए वापस लौट आए। उनके कारण बर्बरीक अजेय हो गया था।
महाभारत के युद्ध के दौरान बर्बरीक युद्ध देखने के इरादे से कुरुक्षेत्र आ रहा था। श्रीकृष्ण जानते थे कि यदि बर्बरीक युद्ध में सम्मिलित हुआ तो परिणाम पांडवों के विरुद्ध होगा। बर्बरीक को रोकने के लिए श्रीकृष्ण एक गरीब ब्राह्मण का रूप धारण कर बर्बरीक के सामने प्रकट हुए। अज्ञानी होकर श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि तुम कौन हो और कुरुक्षेत्र क्यों जा रहे हो। इसके उत्तर में बर्बरीक ने बताया कि वह एक दानवीर योद्धा है जो अपने केवल एक बाण से महाभारत युद्ध का निर्णय कर सकता है। श्रीकृष्ण ने जब उनकी परीक्षा लेनी चाही तो उन्होंने एक बाण चलाया जो पीपल के सभी पत्तों को भेद गया। एक पत्ता श्री कृष्ण के पैरों के नीचे था, इसलिए तीर उनके पैरों के ऊपर जाकर रुक गया।
श्री कृष्ण बर्बरीक की क्षमता से हैरान थे और उन्हें किसी भी तरह से युद्ध में भाग लेने से रोकना चाहते थे। इसके लिए श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि तुम बहुत पराक्रमी हो, तुम मुझ गरीब को कुछ भी दान नहीं दोगे। बर्बरीक ने दान मांगा तो श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उसका सिर मांग लिया। बर्बरीक समझ गया कि यह ब्राह्मण नहीं कोई और है और वास्तविक परिचय देने को कहा। जब श्री कृष्ण ने अपना असली परिचय दिया तो बर्बरीक ने खुशी-खुशी अपना सिर दान करना स्वीकार कर लिया।
रात भर भजन-पूजन करके फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को स्नान आदि करके बर्बरीक ने अपने हाथ से अपना सिर श्रीकृष्ण को दान कर दिया। शीश दान करने से पहले बर्बरीक ने श्रीकृष्ण से युद्ध देखने की इच्छा व्यक्त की थी, इसलिए श्रीकृष्ण ने युद्ध देखने के लिए बर्बरीक के कटे हुए सिर को एक ऊंचे स्थान पर स्थापित कर दिया।
युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद पांडवों में विजय का श्रेय लेने के लिए विचार-विमर्श हो रहा था। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि इसका निर्णय बर्बरीक के सिर से हो सकता है। बर्बरीक के सिर ने बताया कि युद्ध में श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र चल रहा था जिससे योद्धा कटे हुए पेड़ की तरह युद्ध भूमि में गिर रहे थे। द्रौपदी महाकाली के रूप में रक्त पी रही थी।
प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के कटे सिर को वरदान दिया कि कलयुग में तुम मेरे श्याम नाम से पूजे जाओगे, तुम्हारा स्मरण करने से ही भक्तों का कल्याण होगा और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होगी।
दर्शनों के बाद खाटू धाम स्थित श्याम कुंड से बाबा श्याम प्रकट हुए। श्री कृष्ण विराट शालिग्राम के रूप में संवत 1777 से खाटू श्याम जी के मंदिर में स्थित होकर भक्तों की मनोकामना पूरी कर रहे हैं।
हर साल लगता है खाटूश्याम मेला
खाटू श्यामजी का मेला हर साल होली के दौरान लगता है। इस मेले में देश-विदेश से श्रद्धालु बाबा खाटू श्याम जी के दर्शन करने आते हैं। इस मंदिर में भक्तों की गहरी आस्था है। बाबा श्याम, हरे का सहारा, लखदातार, खाटूश्याम जी, मोरवीनंदन, खाटू का नरेश और शीश का दानी ये सभी नाम हैं जिनसे उनके भक्त खाटू श्याम को पुकारते हैं। खाटूश्याम जी मेले का आकर्षण यहां की जाने वाली मानव सेवा भी है। यहां बड़े से बड़े परिवार के लोग आम आदमी की तरह आते हैं और भक्तों की सेवा करते हैं। कहा जाता है कि ऐसा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
इस मंदिर में भक्तों की इतनी आस्था है कि वे अपनी खुशी का श्रेय उन्हें ही देते हैं। श्रद्धालु बताते हैं कि बाबा खाटू श्याम सबकी मनोकामना पूरी करते हैं। खाटूधाम में आस लगाने वालों की झोली बाबा खाली नहीं रखते।