PUBLISHED BY : VANSHIKA PANDEY
हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद पूर्णिमा तिथि से आश्विन मास की अमावस्या तिथि तक का समय पितरों को समर्पित है। पितृ पक्ष के दौरान, जो लोग अब इस धरती पर जीवित नहीं हैं, उन्हें श्राद्ध, पिंड दान और तर्पण दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान, पूर्वज अपने परिवारों से मिलने और उन्हें आशीर्वाद देने के लिए स्वर्ग से पृथ्वी पर आते हैं। पितृ पक्ष के अंतिम दिन को सर्व पितृ अमावस्या, पितृ विसर्जन अमावस्या और महालय के नाम से जाना जाता है। इस दिन श्राद्ध, पिंडदान और पूजा कर सभी पितरों को विदा किया जाता है। इसी कारण इस तिथि को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है।
सर्वपितृ अमावस्या तिथि 2022
सर्वपितृ अमावस्या तिथि – 25 सितंबर, रविवार
अमावस्या तिथि की शुरुआत – 25 सितंबर को सुबह 03:12 बजे
अमावस्या तिथि का समापन- 26 सितंबर प्रातः 03.23 बजे तक
इस दिन करें पीपल की पूजा
शास्त्रों के अनुसार पीपल के वृक्ष में सभी देवी-देवता और पूर्वज निवास करते हैं। इसलिए पीपल के पेड़ की पूजा करने का विधान है। सर्वपितृ अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा और दीपक जलाने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि अमावस्या तिथि को पीपल की पूजा करने से पितरों की प्रसन्नता होती है। इस दिन तांबे के बर्तन में पानी, काले तिल और दूध मिलाकर पीपल के पेड़ पर चढ़ाकर पितरों को प्रसन्न किया जाता है।
सर्वपितृ अमावस्या पूजा विधि
- तर्पण – पितरों को दूध, तिल, कुशा, फूल, सुगंधित जल अर्पित करें.
- पिंडदान – चावल या जौ का दान करें और भूखे को भोजन भेजें.
- वस्त्र : गरीबों को वस्त्र दें।
- दक्षिणा: भोजन के बाद दक्षिणा दिए बिना और बिना पैर छुए फल नहीं मिलता।
- पूर्वजों के नाम से यह कार्य करें जैसे शिक्षा दान, रक्तदान, अन्नदान, वृक्षारोपण, चिकित्सा दान आदि अवश्य करना चाहिए।
सर्वपितृ अमावस्या का महत्व
हर महीने में पड़ने वाली अमावस्या तिथि का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। अमावस्या तिथि पूर्वजों को समर्पित है। पितृ पक्ष के दौरान सर्व पितृ अमावस्या का विशेष महत्व है क्योंकि इस तिथि पर सभी पूर्वजों को विदाई दी जाती है। सर्वपितृ अमावस्या के दिन जिन परिवार के सदस्यों को अपने किसी पूर्वज की मृत्यु तिथि का पता नहीं है या वे किसी भी परिस्थिति में अपने परिवार के सदस्यों के लिए श्राद्ध नहीं कर पाए हैं, वे सर्व पितृ अमावस्या पर पिंडदान और तर्पण कर सकते हैं। इस पितृ पक्ष की अमावस्या के दिन सभी पितरों का श्राद्ध किया जाता है। सर्व पितृ अमावस्या के दिन पूर्वज अपने परिवारों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देकर स्वर्ग के लिए प्रस्थान करते हैं।
जानिए तिल और कुश के साथ श्राद्ध करने का महत्व
तिल और कुश की उत्पत्ति सभी पितृ लोकों के स्वामी जनार्दन के शरीर के पसीने से हुई है, इसलिए तर्पण और अर्घ्य के समय तिल और कुश का प्रयोग करना चाहिए। श्राद्ध में ब्राह्मण भोज का सबसे पुण्य समय कुटप है, दिन का आठवां मुहूर्त 11:36 से 12.24 तक का समय उत्तम है।