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Trishul : कैसे मिला था भगवान् शिव को त्रिशूल

यह शिव का सबसे प्रिय अस्त्र हैं शिव का त्रिशूल पवित्रता एवम् शुभकर्म का प्रतीक है । प्रायः सभी शिवालय (शिव का मन्दिर) में त्रिशूल अनिवार्य रूप से स्थापित किया जाता है जिसमें सोने चाँदी ओर लोहे की धातु से बने त्रिशूल ज्यादातर शिवालय में दिखाई देते हैं । बिना त्रिशूल के शिवालय अधूरा है।

Trishul : कैसे भगवान शिव के पास आया था त्रिशूल ?

भगवान शिव के पास त्रिशूल कैसे आया इस बारे में एक प्रसिद्ध कथा है। अनुसार, जब देवता-दानव संग्राम में शिव ने तांडव नृत्य किया तो उनके अंग से तेज उछालने लगे। उनकी छत्री में से उत्पन्न तेज ने स्वर्ग और पृथ्वी दोनों को हल्का कर दिया था।

इस समय पर भगवान विष्णु ने शिव के अंगों के तेज को रोकने के लिए सहायता की थी। उन्होंने एक उद्धव में ताकत भरी हथौड़ा दिया, जिससे शिव के अंगों को थोड़ा सा सांत्वना मिली। उनकी छत्री में से फिर एक तीव्र ज्योति उछली, जिससे त्रिशूल पैदा हुआ।

Trishul : क्या है त्रिशूल का अर्थ

त्रिशूल का अर्थ विभिन्न हो सकता है। धर्म के अनुसार, यह त्रिविक्रम होता है जो सत्ता, ज्ञान और उपदेश का प्रतीक होता है। त्रिशूल का महत्व भी बहुत है, क्योंकि यह शिव की शक्ति का प्रतीक होता है जो संसार के समस्त अभावों, दुःखों और अन्यायों को नष्ट कर सकती है।

हालांकि त्रिशूल के उत्पत्ति के बारे में कुछ अलग-थलग कथाएं हो सकती हैं, लेकिन इन सभी कथाओं के बाद भी, त्रिशूल भगवान शिव का मुख्य आयुध है और इसका बहुत महत्व है। इसे भगवान शिव की शक्ति और शक्ति का प्रतीक माना जाता है और यह सदा उनके साथ होता है। त्रिशूल शिव की विशेषताओं का प्रतीक है जो उन्हें सबसे अधिक पहचानती हैं। त्रिशूल में तीनों धातुओं का मिश्रण होता है, जो शक्तियों को नियंत्रित करने में मदद करता है। इसके अलावा, त्रिशूल का एक टूटने वाला प्रतीक होता है, जो अधिक शक्तिशाली बनाता है। भगवान शिव ने इस आयुध का उपयोग कई बार किया है जैसे कि दुष्टों को मिटाने, सृष्टि के समस्त त्रासदियों से मुक्ति देने आदि।

Trishul :

शिव पुराण में भगवान शिव के त्रिशूल को लेकर एक पौराणिक कथा का जिक्र किया गया है। शिव पुराण में बताया गया है कि पूरी सृष्टि की शुरुआत के समय भगवान शिव ब्राह्मणाद से प्रकट हुए थे। उनके साथ तीन गुण, रज, तम और सत गुण भी प्रकट हुए, इन तीनों गुणों को मिलाकर शिव शूल बने, जिससे त्रिशूल बना। जबकि विष्णु पुराण में बताया गया है कि विश्वकर्मा ने सूर्य के उस हिस्से से एक त्रिशूल बनाया था, जिसे उन्होंने भगवान शिव को अर्पित किया था।

Trishul : क्यों त्रिशूल है महत्तवपूर्ण

धर्म और दर्शनों में त्रिशूल को एक महत्वपूर्ण चिन्ह माना जाता है। इसे भगवान शिव के साथ ही भगवान विष्णु और देवी दुर्गा के हाथों में भी देखा जाता है। इसका अर्थ अलग-अलग हो सकता है लेकिन धार्मिक और दार्शनिक विचारधारा के अनुसार इसका महत्व विभिन्न होता है।

त्रिशूल का एक महत्वपूर्ण अर्थ है संसार के तीनों गुणों का प्रतिनिधित्व करना। इसे सांख्य दर्शन के अनुसार रजोगुण, तमोगुण और सत्त्वगुण का प्रतीक माना जाता है। यह दर्शाता है कि जीव जब तीनों गुणों से मुक्त हो जाता है, तब उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

Trishul : भूत, भविष्य और वर्तमान को दर्शाता है

त्रिशूल को तीनों अंगों से जोड़कर भी देखा जाता है, जो भूत, भविष्य और वर्तमान को दर्शाते हैं। इससे भगवान शिव को भक्त त्रिकालदर्शी कहा जाता है, जो समय के तीन खंडों को जानते हैं।

विभिन्न धर्मों और दर्शनों में त्रिशूल का उपयोग भी अलग-अलग होता है।

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