छत्तीसगढ़
Trending

संवाद कार्यालय में पत्रकार से मारपीट और पुलिस कार्रवाई के विरोध में राज्यभर के मीडिया संगठनों ने खोला मोर्चा

छत्तीसगढ़ संवाद कार्यालय में वरिष्ठ अधिकारी द्वारा पत्रकार से मारपीट और उसके बाद पुलिस की मनमानी कार्रवाई के खिलाफ अब राज्यभर के पत्रकार संगठनों में उबाल है। रायपुर, बिलासपुर, सरगुजा, दुर्ग, बस्तर, राजनांदगांव और बालोद सहित लगभग सभी ज़िलों में मीडिया संस्थानों, और स्वतंत्र पत्रकारों ने एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन किया। पत्रकारों ने कहा, यह हमला किसी व्यक्ति पर नहीं, बल्कि चौथे स्तंभ की आत्मा पर है।
प्रदेश के लगभग कई संगठनों ने गत दिवस जिला मुख्यालयों पर काली पट्टी लगाकर विरोध जताया और मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपे। ज्ञापन में संवाद कार्यालय की घटना की उच्चस्तरीय, निष्पक्ष जांच, दोषी अधिकारी और पुलिस कर्मियों पर आपराधिक कार्रवाई, तथा पत्रकार सुरक्षा अधिनियम के सख्त अनुपालन की माँग की गई है।
बिलासपुर, सरगुजा, कांकेर, और दुर्गके पत्रकारों सहित अनेक संगठनों ने संयुक्त रूप से चेतावनी दी है कि यदि शासन ने इस मामले में शीघ्र और पारदर्शी कार्रवाई नहीं की, तो राज्यभर में चरणबद्ध आंदोलन शुरू किया जाएगा।

कानून के उल्लंघन पर तीखी प्रतिक्रिया – सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की धज्जियाँ उड़ाई गईं


पत्रकार संगठनों ने कहा कि अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य (2014) और डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1997) मामलों में पुलिस ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का खुला उल्लंघन किया है।
रात में घर में जबरन प्रवेश, बिना महिला पुलिसकर्मी की मौजूदगी, और सात वर्ष से कम सज़ा वाले प्रकरण में बलपूर्वक कार्रवाई – ये सब ‘रूल ऑफ लॉ’ (कानून के शासन” की अवहेलना के उदाहरण हैं। जब कानून सत्ता के दबाव में झुकने लगे, तो लोकतंत्र की रीढ़ कमजोर पड़ने लगती है।

पत्रकारों ने मांग की है कि –

  • जनसंपर्क अधिकारी संजीव तिवारी को तत्काल निलंबित कर उनके खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज हो।
  • पुलिस अधिकारियों की भूमिका की जांच उच्च स्तरीय समिति करे।
  • भविष्य में पत्रकारों पर कार्रवाई से पहले ‘प्रेस प्रोटेक्शन प्रोटोकॉल’ लागू किया जाए।

प्रदर्शन/ज्ञापन के दौरान पत्रकारों ने कहा –


“हम सरकार के खिलाफ नहीं, अन्याय के खिलाफ हैं। यदि शासन ने चुप्पी साधी, तो यह संदेश जाएगा कि सत्ता कानून से ऊपर है।”
कई वरिष्ठ संपादकों ने इस प्रकरण को “प्रेस फ्रीडम बनाम पावर मिसयूज़” का उदाहरण बताया और कहा कि राज्य के लोकतांत्रिक चरित्र की परख इसी से होगी कि शासन इस मामले को कितनी गंभीरता से लेता है।
पत्रकारों ने कहा – “कलम को डराया नहीं जा सकता। यदि शासन संवैधानिक सीमाओं की रक्षा नहीं करेगा, तो जनता के सवाल सड़कों पर उतरेंगे।”

Buland Chhattisgarh

Show More

Related Articles

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker