छत्तीसगढ़ संवाद कार्यालय में कार्यरत अधिकारी द्वारा पत्रकार से मारपीट करने एवं झूठे FIR दर्ज कराकर पुलिस द्वारा बुलंद छत्तीसगढ़ के संपादक के घर विधिविरुद्ध बर्बरता करने के संबंध में— निष्पक्ष जांच दंडात्मक कार्यवाही की मांग हुई तेज़`
छत्तीसगढ़ संवाद कार्यालय में कार्यरत अधिकारी द्वारा पत्रकार से मारपीट करने एवं झूठे FIR दर्ज कराकर पुलिस द्वारा बुलंद छत्तीसगढ़ के संपादक के घर विधिविरुद्ध बर्बरता करने के संबंध में निष्पक्ष जांच एवं दंडात्मक कार्यवाही हेतु द्वारा छत्तीसगढ़ के कई जिलों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के नाम सौंपा गया ज्ञापन



ज्ञापन :
प्रति:
श्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी
माननीय प्रधानमंत्री, भारत शासन
7 लोक कल्याण मार्ग नई दिल्ली,पिन – 110011
श्री विष्णुदेव साय
माननीय मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़ शासन
विषय: छत्तीसगढ़ संवाद कार्यालय में कार्यरत अधिकारी द्वारा पत्रकार से मारपीट करने एवं झूठे एफ.आई.आर. दर्ज कराकर पुलिस द्वारा “बुलंद छत्तीसगढ़” के संपादक के घर विधिविरुद्ध बर्बरता करने के संबंध में — निष्पक्ष जाँच एवं दंडात्मक कार्यवाही हेतु निवेदन।
महोदय,
पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया में प्रसारित एक वीडियो में छत्तीसगढ़ जनसंपर्क संचालनालय के अपर संचालक श्री संजीव तिवारी को एक पत्रकार के साथ शारीरिक रूप से आक्रामक व्यवहार करते एवं गला दबाने का प्रयास करते स्पष्ट देखा गया है। यह घटना न केवल पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर प्रहार है, बल्कि शासन की प्रशासनिक मर्यादा और कानून के शासन (Rule of Law) पर भी सीधा आघात है।
घटना का सारांश:
1️⃣ दिनांक 07.10.2025 को “बुलंद छत्तीसगढ़” समाचार पत्र में “जनसंपर्क विभाग का अमर सपूत” शीर्षक से प्रकाशित समाचार में श्री संजीव तिवारी के दो दशकों से स्थानांतरण न होने का उल्लेख किया गया।
2️⃣ अगले दिन 08.10.2025 को समाचार पत्र के प्रतिनिधि अभय शाह जब संवाद कार्यालय पहुँचे, तो श्री तिवारी ने दुर्भावनावश उन्हें अपमानित करते हुए बदसलूकी की।
3️⃣ उसी घटना की शिकायत समाचार पत्र के संपादक श्री मनोज पांडे द्वारा माननीय मुख्यमंत्री को तत्काल प्रेषित की गई।
4️⃣ 09.10.2025 को जब अभय शाह अपने कुछ सहयोगियों के साथ संवाद कार्यालय पहुँचे, तो वे केवल बातचीत एवं समाधान के उद्देश्य से आए थे। किंतु वीडियो में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि श्री तिवारी ने पहले कॉलर पकड़कर धक्का दिया और तत्पश्चात गले को दबाकर जानलेवा हमला किया। कक्ष के बाहर पुनः उन्होंने अभय शाह पर हमला किया।
5️⃣ उक्त वीडियो किसी भी प्रकार से संपादित या छेड़छाड़युक्त नहीं है — यह डिजिटल साक्ष्य की दृष्टि से प्रमाणिक (forensically intact) है।
6️⃣ घटना के पश्चात श्री तिवारी ने अपने पद एवं प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए पुलिस को भ्रामक विवरण देकर चार अज्ञात व्यक्तियों पर झूठी एफ.आई.आर. दर्ज कराई।
कानूनी विश्लेषण:
दर्ज एफ.आई.आर. (अपराध क्रमांक 0165/2025) में सार्वजनिक संपत्ति नुक़सान निवारण अधिनियम, 1984 की धारा 3(2) एवं भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धाराएँ 132, 221, 296, 3(5), 324(4) तथा 351(2) आरोपित की गई हैं — परंतु उक्त सभी धाराओं में सात वर्ष से अधिक दंड का प्रावधान नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय — Arnesh Kumar vs. State of Bihar (2014) 8 SCC 273
➡️ इसमें स्पष्ट कहा गया है कि जिन अपराधों में 7 वर्ष से कम सजा हो, उनमें गिरफ्तारी सामान्य नियम नहीं बल्कि अपवाद होनी चाहिए। गिरफ्तारी से पूर्व पुलिस को यह लिखित रूप में दर्ज करना अनिवार्य है कि गिरफ्तारी की वास्तविक आवश्यकता क्या है।
📜 सुप्रीम कोर्ट का निर्णय — D.K. Basu vs. State of West Bengal (1997) 1 SCC 416
➡️ इसमें स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए हैं कि गिरफ्तारी के दौरान पुलिस का व्यवहार पारदर्शी, मानवोचित एवं विधिसम्मत होना चाहिए। बिना महिला पुलिसकर्मी के घर में रात में प्रवेश करना, गेट तोड़ना, कैमरा/डीवीआर कब्ज़े में लेना — यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है और gross violation of procedural justice है।
इन निर्णयों के प्रकाश में स्पष्ट है कि —
पुलिस की यह कार्यवाही शक्ति का रंगीन प्रयोग (colourable exercise of power) है और पत्रकारिता के स्वतंत्र अधिकार पर एक खतरनाक प्रहार है।
विधिक व नैतिक बिंदु:
1️⃣ श्री संजीव तिवारी द्वारा पद का दुरुपयोग करते हुए जानलेवा हमला किया गया — जो भारतीय न्याय संहिता की धारा 307 (हत्या का प्रयास), धारा 166 (पद का दुरुपयोग) तथा धारा 166A (कानूनी कर्तव्य का उल्लंघन) के तहत गंभीर आपराधिक अपराध है।
2️⃣ झूठी एफ.आई.आर. कराना एवं साक्ष्यों का विकृतिकरण धारा 212, 229 और 248 के अंतर्गत दंडनीय अपराध है।
3️⃣ बिना अनुमति रात में घर में प्रवेश कर महिलाओं से अभद्रता भा०द०वि० धारा 452 और 354 के तहत संगीन अपराध है।
4️⃣ यह समूची घटना “Press Freedom” के संवैधानिक संरक्षण की अवमानना है, जो अनुच्छेद 19(1)(a) द्वारा प्रदत्त है।
अतः निवेदन है कि—
1️⃣ श्री संजीव तिवारी, अपर संचालक, जनसंपर्क संचालनालय, के विरुद्ध
• भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धाराओं समकक्ष भा०द०वि०, 352, 166, 166A, 307 के अंतर्गत
आपराधिक प्रकरण पंजीबद्ध किया जाए।
2️⃣ उनके विरुद्ध सिविल सेवा आचरण नियमावली के अंतर्गत विभागीय जाँच एवं निलंबन की कार्यवाही प्रारंभ की जाए।
3️⃣ रात 1:37 बजे पुलिस द्वारा पत्रकार मनोज पांडे के निवास में जबरन प्रवेश, गेट तोड़ने और महिला पुलिस की अनुपस्थिति की घटना पर
• संबंधित पुलिस कर्मियों के विरुद्ध धारा 324, 452, 354 भा०द०वि० के तहत अपराध दर्ज हो।
• साथ ही यह Contempt of Supreme Court Directions (D.K. Basu & Arnesh Kumar Cases) माना जाए।
4️⃣ जनसंपर्क विभाग की विज्ञापन वितरण प्रणाली की स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं उच्चस्तरीय जाँच समिति गठित की जाए —
ताकि Print Media Advertisement Policy, 2020, DAVP Guidelines, तथा Digital Advertisement Policy, 2023 के पालन की समीक्षा हो सके।
5️⃣ यह सुनिश्चित किया जाए कि किसी भी विभाग में अधिकारी नियमित स्थानांतरण अवधि से अधिक समय तक पदस्थ न रहें, जिससे administrative monopoly समाप्त हो और पारदर्शिता बनी रहे।
महोदय,
यह मामला केवल एक पत्रकार पर हमले का नहीं, बल्कि राज्य के लोकतांत्रिक चरित्र और चौथे स्तंभ की स्वतंत्रता की परीक्षा का है।
यदि शासन इस पर शीघ्र, पारदर्शी और निष्पक्ष कार्रवाई नहीं करता, तो यह संदेश जाएगा कि “शक्ति कानून से ऊपर है।”











