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जनसम्पर्क विभाग में अपर संचालक संजीव तिवारी ने किया पत्रकारों पर हमला , अभद्रता की सारी हदें पार

राजधानी रायपुर स्थित जनसंपर्क विभाग का माहौल उस समय हड़कंप मच गया जब विभाग के अपर संचालक संजीव तिवारी ने पत्रकारों के साथ अभद्रता और हिंसक व्यवहार किया। 8 अक्टूबर की दोपहर लगभग 1 बजे, बुलंद छत्तीसगढ़ समाचार पत्र के प्रतिनिधि अभय शाह किसी आवश्यक कार्य से जनसंपर्क विभाग पहुंचे थे। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, वहां मौजूद अपर संचालक संजीव तिवारी ने उनके साथ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करते हुए गाली-गलौज की, और धमकी दी – “अब दिखे तो हाथ-पैर तोड़ दूंगा!” इतना कहकर उन्होंने अभय शाह को दफ्तर से भगा दिया।
मामला यहीं नहीं थमा। 9 अक्टूबर को, न्यूज़ 21 के पत्रकार दुलारे अंसारी, बुलंद छत्तीसगढ़ के प्रतिनिधि अभय शाह के साथ जब इस विवाद को समझने और पूछताछ करने पहुंचे कि “आपने कल पत्रकार को क्यों धमकाया?”, तो संजीव तिवारी फिर बेकाबू हो गए। उन्होंने बुलंद प्रतिनिधि अभय शाह का गला दबाने का प्रयास किया, और जब दूसरे पत्रकार अंसारी उन्हें छुड़ाने आए, तो वो उन पर भी टूट पड़े।

वायरल वीडियो में साफ़ दिख रही सच्चाई


घटना का वीडियो अब वायरल हो रहा है, जिसमें साफ दिख रहा है कि संजीव तिवारी पहले आकर पत्रकारों पर हमला करते हैं, जबकि बाकी लोग केवल बीच-बचाव की कोशिश कर रहे थे।
सबसे हैरानी की बात यह है कि इस पूरे प्रकरण में ‘बुलंद छत्तीसगढ़’ के संपादक मनोज पांडे मौजूद तक नहीं थे, फिर भी 10 अक्टूबर की रात करीब 1 बजे पुलिस उनके घर पहुंची, जिससे यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या विभाग पत्रकारों को डराने का प्रयास कर रहा है?

मीडिया जगत में आक्रोश


इस घटना ने पूरे मीडिया जगत में आक्रोश फैला दिया है। पत्रकार संगठन इसे “मीडिया की आवाज़ को दबाने की कोशिश” बता रहे हैं और संजीव तिवारी के खिलाफ तत्काल निलंबन और जांच की मांग कर रहे हैं।
पत्रकारों का कहना है – “पत्रकारों पर हाथ उठाने वाले अधिकारी को बचाने की कोशिश – क्या अब सच्चाई दिखाना गुनाह है?”
“जनसंपर्क विभाग का यह रवैया न सिर्फ शर्मनाक, बल्कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर सीधा हमला है।”

संपादक की पत्नी की चूड़ियां टूटीं, बेटियां सहमीं – पत्रकारों से दुर्व्यवहार के बाद अब परिवार पर आधी रात पुलिसिया कहर

  • आधी रात बिना वारंट पुलिस ने तोड़ा गेट, जनसंपर्क विभाग की दबंगई पर सवाल
  • जनसंपर्क विभाग के अधिकारी की ‘हठधर्मिता’ के समर्थन में पुलिस की कार्रवाई

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक ऐसी घटना घटी जिसने न केवल पत्रकारिता की गरिमा को आहत किया बल्कि पुलिस और प्रशासन की कार्यशैली पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए। बुलंद छत्तीसगढ़ समाचार पत्र के संपादक मनोज पांडे के घर आधी रात पुलिस की कई गाड़ियाँ पहुँचीं, और बिना किसी वारंट या महिला पुलिस के, दरवाज़े का ताला मशीन से तोड़कर घर में जबरन प्रवेश कर गईं।
उस समय घर में केवल मनोज पांडे की पत्नी और तीन बेटियाँ थीं, कोई पुरुष सदस्य मौजूद नहीं था। घर की बड़ी बेटी ने बताया, “रात करीब एक बजे अचानक गाड़ियों की आवाज़ आई। कुछ ही मिनटों में पुलिस वाले गेट पीटने लगे। जब हमने पूछा कि क्यों आए हैं, तो उन्होंने कहा – ‘आपके पापा को बुलाओ, हम उनसे बात करने आए हैं।’”
परिवार ने बार-बार बताया कि मनोज पांडे घर पर नहीं हैं, लेकिन पुलिसकर्मी नहीं माने। उन्होंने धमकी दी – “गेट नहीं खोला तो तोड़ देंगे।” जब परिवार ने सुरक्षा के लिहाज से दरवाज़ा खोलने से इनकार किया, तो पुलिसकर्मियों ने मशीन से ताला तोड़ दिया और जबरन अंदर घुस आए।

“उस वक्त घर में सिर्फ महिलाएँ थीं, पुलिस ने मर्यादा नहीं रखी”


प्रत्यक्षदर्शियों और परिवार की मानें तो करीब 12 से 15 पुलिसकर्मी, जिनमें अधिकांश सिविल ड्रेस में थे और सिर्फ दो यूनिफॉर्म में, घर में घुस गए।
परिवार का कहना है कि उनमें से कुछ पुलिसकर्मियों के मुंह से शराब की गंध आ रही थी, और वे असामान्य व्यवहार कर रहे थे।
संपादक मनोज पांडे की पत्नी ने बताया, “हमारे बार-बार मना करने के बावजूद वे जूते पहनकर मंदिर वाले हिस्से तक चले गए। हमने रोका तो बोले – ‘हमें मत सिखाओ।’ जब मैंने सीसीटीवी के DVR को छेड़ने से मना किया तो एक पुलिसकर्मी ने मुझे धक्का दिया, जिससे मेरी चूड़ियां टूट गईं।”


परिवार के अनुसार, पुलिसवालों ने घर के हर कमरे और अलमारी को खोलकर तलाशी ली, यहां तक कि ऊपरी मंज़िल पर किराए से रहने वाली लड़कियों के कमरों में भी जबरन प्रवेश किया गया।

ना वारंट, ना महिला पुलिस – सिर्फ डराने की कार्रवाई


परिवार ने स्पष्ट किया कि पुलिस ने किसी प्रकार का सर्च वारंट या लिखित नोटिस नहीं दिखाया। जब मनोज पांडे की पत्नी ने पूछा कि आप लोग इस तरह क्यों आए हैं, तो एक पुलिसकर्मी ने कहा, “हम इसी तरीके से आते हैं, हमें मत सिखाओ।”
पुलिस दल में एक ट्रांसजेंडर सदस्य था, लेकिन एक भी महिला पुलिसकर्मी नहीं थी, जबकि कानूनन किसी महिला के घर में रात के समय प्रवेश करने से पहले महिला पुलिस की मौजूदगी आवश्यक है।

पत्रकार पर हमला करने वाले अधिकारी के बचाव में पुलिस?


यह घटना दरअसल उसी विवाद से जुड़ी है जिसमें कुछ दिन पहले जनसंपर्क विभाग के अपर संचालक संजीव तिवारी पर बुलंद छत्तीसगढ़ और न्यूज़ 21 के पत्रकारों के साथ अभद्रता और मारपीट के आरोप लगे थे।
उस विवाद का वीडियो भी वायरल हुआ, जिसमें साफ दिख रहा है कि संजीव तिवारी ने पहले हमला किया। इसके बावजूद, 10 अक्टूबर की रात पुलिस संपादक मनोज पांडे के घर पहुंची, जबकि वे उस विवाद में कहीं मौजूद तक नहीं थे।
यह सवाल अब पूरे पत्रकार समुदाय में गूंज रहा है कि –

  • क्या पुलिस पत्रकारों को डराने की कोशिश कर रही है?
  • क्या जनसंपर्क विभाग के अधिकारी की दबंगई के समर्थन में यह कार्रवाई की गई?
  • आधी रात की दहशत – बेटियों की आंखों में आज भी खौफ!
    संपादक मनोज पांडे की बड़ी बेटी वंशिका पांडे ने बताया, “पापा घर पर नहीं थे, फिर भी पुलिस वाले बार-बार पूछ रहे थे कि पापा को बुलाओ, वरना गेट तोड़ देंगे। जब उन्होंने मशीन से गेट तोड़ा तो हम सब डर गए। मम्मी और छोटी बहन गेट के पास थीं, उन्हें भी चोट लगी। हमें लगा जैसे हम अपराधी हों, जबकि हमारे पापा तो वहां थे ही नहीं।”
    वंशिका की आवाज़ कांपती है जब वो बताती हैं कि पुलिसकर्मी घर में किस तरह तलाशी ले रहे थे। “वे भगवान के कमरे में भी जूते पहनकर घुसे, हम रोते हुए मना कर रहे थे, पर वो हंस रहे थे।”
    करीब ढाई घंटे तक पुलिस घर में रही। जाने से पहले कहा – “अभी तो जा रहे हैं, सुबह फिर आएंगे। रायपुर की पूरी पुलिस ले आएंगे।”

पत्रकार जगत में आक्रोश, सरकार से निष्पक्ष जांच की मांग


घटना के बाद पूरे मीडिया जगत में गुस्सा और असुरक्षा की भावना व्याप्त है।
पत्रकार संगठनों ने इसे “पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर हमला” बताया है। वरिष्ठ संपादकों का कहना है कि यदि कोई अधिकारी पत्रकारों पर इस तरह दबाव डाल सकता है, और पुलिस बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के आधी रात घरों में घुस सकती है, तो यह लोकतंत्र के लिए गहरा खतरा है।
पत्रकार संगठनों ने मुख्यमंत्री और गृह मंत्री से तत्काल जांच, और संजीव तिवारी सहित संबंधित पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।

Buland Chhattisgarh

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