रायपुर: हरेली पर विशेष लेख
( PUBLISHED BY – SEEMA UPADHYAY )
छत्तीसगढ़ में हमारी मेहनत से पैदा हुई हरियाली को हरेली के रूप में मनाने की परंपरा है। कृषि युग की शुरुआत से ही हरियाली ने हमारे शरीर और दिमाग को ढका हुआ है। प्रकृति चक्र जेठ-बसाख की भीषण गर्मी, आषाढ़ की बूंद पर, मिट्टी की सुगंध और हरियाली की कल्पना को याद करने के लिए सारा ज्ञान मन में समा जाता है। यह बैसाख की अक्ती, आषाढ़ की रथ यात्रा और सावन की हरेली जैसी दिखती है, जहां हमारे किसान और पानी-पसारी भाई जमीन को उपजाऊ बनाने का काम करते हैं। किसान हर समय मेहनत के बाद उत्साह की कामना करते हैं। मंगल का उत्साह समृद्धि लाता है। तन और मन में खुशी लाता है।
(1) हरेली में गौधन की पूजा करने की रस्म के साथ चावल आटे की लोंदी एवं जड़ी-बूटियों को मिलाकर मवेशियों को खिलाया जाता है, ताकि बारिश के मौसम में मवेशियां बीमार न हो। अंडे के पौधे की पत्तियों में नमक रखकर मवेशियों को चटाई जाती है।
(2) जीवन का आधार है किसानी और पशुधन- कृषि और पशुधन जीवन का आधार है, जहाँ पृथ्वी है, वहाँ हवा है, वहाँ पानी है, वहाँ हरियाली है, तभी हरी मिट्टी में नए अंकुरों की पूजा एक रस्म बन गई।
(3) कृषि उपकरण- हल, रापा, कुदाल, कांटा को तालाब में धोते हैं, फिर तेल लगाकर तुलसी चौरा के सामने सजाकर रखा जाता है। पूजन के लिए चीला प्रसाद बनाया जाता है। पूजा में सादगी छत्तीसगढ़ की संस्कृति की पहचान है। चंदन का तिलक लगाते हैं और पूजा करते हैं।