शारदीय नवरात्र का महत्व भारतीय हिन्दू परंपरा में अत्यधिक है, और यह त्योहार मां दुर्गा की पूजा और आराधना के नौ दिनों के अवसर के रूप में मनाया जाता है। इस पूजा के दौरान, मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिन्हें नवरात्रि के नौ दिनों में आलाप, भजन, और आरती के साथ आराधित किया जाता है।
नौवें दिन जिस दिन को को ‘महानवमी’ या ‘नवमी’ कहा जाता है, और इस दिन मां दुर्गा की पूजा और आराधना का उच्चारण किया जाता है। इस दिन प्रतिमा की विशेष पूजा की जाती है और उसे आशीर्वाद लिया जाता है. फिर, पूजा और उत्सव के साथ मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है।
विसर्जन के समय लोग मां दुर्गा के आगमन के आगले साल की अपेक्षा यह आशा और भक्ति के साथ करते हैं, और इसे धूमधाम से मनाते हैं। शहरों में आपसी सांझा और माहौल के बीच धूमधाम से विदाई दी
जाती हैं, और विसर्जन के पश्चात् खुशियाँ और आशीर्वाद के साथ मां दुर्गा की विदाई करते हैं, और उन्हें उनके बैकुंठ धाम की ओर जाने की शुभकामनाएँ देते हैं। यह पर्व हिन्दू धर्म में आस्था, भक्ति, और परिवार के साथ मिलकर मां दुर्गा की पूजा करने का एक श्रेष्ठ उदाहरण है, जिसमें भक्त उनकी शक्ति और साहस की प्रतीक्षा करते हैं।
हर साल की की तरह इस साल भी परंपरा अनुसार विसर्जन का कार्यक्रम बिलासपुर में भव्य रूप से किया गया.. शहर की प्रमुख दुर्गोत्सव समितियों ने जीवंत व चलित झांकियों का प्रदर्शन पूरी रात किया । दुर्गा विसर्जन में बाजे-गाजे के साथ रंगीन लाइट व सजावट लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना। चारों ओर एक से बढ़कर एक विसर्जन झांकियों को देखकर श्रद्धालु भी
खुश हो उठे। मातारानी के विसर्जन के साथ नवरात्रि के पावन पर्व का भी समापन हुआ।
विसर्जन कार्यक्रम में माँ दुर्गा की भव्य झाँकियों को देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालू पहुंचे ….हालांकी इस साल भी हर साल तरह की तरह नवमी के दिन हवन-पूजन के साथ ही प्रतिमा
के विसर्जन का दौर शुरू हो गया था।
लेकिन, परंपरा को ध्यान में रखते हुए शहर की बड़ी समितियों से जुड़े आस्थावान विसर्जन को भव्य रूप देने के लिए मनमोहक झांकियों, ढोल-ताशे, आकर्षक लाइटिंग, बैंड-बाजा के साथ झूमते-नाचते हुए विजयदशमी के दूसरे दिन माँ दुर्गा का विसर्जन किया गया……