भगवान शिव की नगरी काशी को वाराणसी और बनारस के नाम से भी जाना जाता हैं। यहां के घाट बहुत ही प्रसिद्ध हैं। यहां मणिकर्णिका घाट के साथ ही गंगा घाट, दशाश्वमेघ घाट, अस्सी घाट सहित कई घाट देखने लायक हैं। अस्सी घाट की गंगा आरती को देखने के लिए दूर दूर से यहाँ लोग आते हैं।
गंगा नदी के तट पर यह एक शमशान घाट है जिसे तीर्थ की उपाधी दी गई है। कहते हैं यहां कि चिता की आग कभी शांत नहीं होती है। और हर रोज यहां 300 से ज्यादा शवों को जलाया जाता है। यहां पर जिसका भी अंतिम संस्कार होता है उसको सीधे मोक्ष मिलता है। और इस घाट में 3000 साल से भी ज्यादा समय से ये कार्य हो रहा है।
चिता की राख से होली : Manikarnika Ghat
कहते हैं, इस दिन शिव के रूप विश्वनाथन बाबा, अपनी पत्नी पार्वती जी का गौना कराकर अपने देश लोटे थे। इनकी डोली जब यहां से गुजरती है तो इस घाट के पास के सभी अघोरी बाबा लोग नाच गाने, रंगों से इनका स्वागत करते है मणिकर्णिका घाट में फाल्गुन माह की एकादशी के दिन चिता की राख से होली खेली जाती है।
प्राचीन कुंड : Manikarnika Ghat
कहा जाता है कि एक समय में भगवान शिव हजारों वर्षों से योग निंद्रा में थे, तब विष्णु जी ने अपने चक्र से एक कुंड को बनाया था जहां भगवान शिव ने तपस्या से उठने के बाद स्नान किया था और उस स्थान पर उनके कान का कुंडल खो गया था जो आज तक नहीं मिला। तब ही से उस कुंड का नाम मणिकर्णिका घाट पड़ गया। काशी खंड के अनुसार गंगा अवतरण से पहले इसका अस्तित्व है।
कुंड से निकली प्रतिमा : Manikarnika Ghat
प्राचीन काल में मां मणिकर्णिका की अष्टधातु की प्रतिमा इसी कुंड से निकली थी। कहते हैं कि यह प्रतिमा वर्षभर ब्रह्मनाल स्थित मंदिर में विराजमान रहती है परंतु अक्षय तृतीया को सवारी निकालकर पूजन-दर्शन के लिए प्रतिमा कुंड में स्थित 10 फीट ऊंचे पीतल के आसन पर विराजमान कराई जाती है। इस दौरान कुंड का जल सिद्ध हो जाता है जहां स्नान करने से मुक्ति मिलती है।
श्री हरि विष्णु ने किया था पहला स्नान : Manikarnika Ghat
कहते हैं कि मणिकर्णिका घाट पर भगवान विष्णु ने सबसे पहले स्नान किया। इसीलिए वैकुंठ चौदस की रात के तीसरे प्रहर यहां पर स्नान करने से मुक्ति प्राप्त होती है। यहां पर विष्णु जी ने शिवजी की तपस्या करने के बाद एक कुंड बनाया था।
शव से पूछते हैं कि कहां है कुंडल : Manikarnika Ghat
यहां पर शव से पूछते हैं- ‘क्या उसने शिव के कान का कुंडल देखा”। कहा जाता है कि जब भी यहां जिसका दाह संस्कार किया जाता है अग्निदाह से पूर्व उससे पूछा जाता है, क्या उसने भगवान शिव के कान का कुंडल देखा। यहां भगवान शिव अपने औघढ़ स्वरूप में सैदव ही निवास करते हैं।
माता सती का अंतिम संस्कार : Manikarnika Ghat
यह भी कहा जाता है कि भगवान् भोलेनाथ जी द्वारा यही पर माता सती जी का अंतिम संस्कार किया था और इसी कारण यह घाट महाश्मशान घाट के नाम से प्रसिद्ध है।