Guru Ghasidas jayanti 2023 : गुरु घासीदास !!
सन 1672 में वर्तमान हरियाणा के नारनौल नामक स्थान पर साध बीरभान और जोगीदास नामक दो भाइयों ने सतनामी साध मत
PUBLISHED BY -LISHA DHIGE
गुरू घासीदास (1756 – अंतर्ध्यान अज्ञात) का अवतार ग्राम गिरौदपुरी तहसील बलौदाबाजार जिला रायपुर में पिता महांगुदास जी और माता अमरौतिन के यहाँ हुआ थे। सिद्ध सत्य के बल पर गुरूजी ने संत समाज को भण्डारपुरी धर्मस्थल के रूप में प्रदान किया, जहाँ आज भी गुरूजी के वंशज निवास कर रहे हैं। उन्होंने अपने समय की सामाजिक-आर्थिक असमानता, शोषण और जातिवाद को समाप्त कर समान मानव का संदेश दिया। समाज के लोग उनसे काफी प्रभावित रहे हैं।
जीवनी
सन 1672 में वर्तमान हरियाणा के नारनौल नामक स्थान पर साध बीरभान और जोगीदास नामक दो भाइयों ने सतनामी साध मत का प्रचार किया था। सतनामी साध मत के अनुयायी किसी भी मनुष्य के सामने नहीं झुकने के सिद्धांत को मानते थे। वे सम्मान करते थे लेकिन किसी के सामने झुक कर नहीं। एक बार एक किसान ने तत्कालीन मुगल बादशाह औरंगजेब के कारिंदे को झुक कर सलाम नहीं किया तो उसने इसको अपना अपमान मानते हुए उस पर लाठी से प्रहार किया जिसके प्रत्युत्तर में उस सतनामी साध ने भी उस कारिन्दे को लाठी से पीट दिया। यह विवाद यहीं खत्म न होकर तूल पकडते गया और धीरे धीरे मुगल बादशाह औरंगजेब तक पहुँच गया कि सतनामियों ने बगावत कर दी है। यहीं से औरंगजेव और सतनामियों का ऐतिहासिक युद्ध हुआ था। जिसका नेतृत्व सतनामी साध बीरभान और साध जोगीदास ने किया था। यूद्ध कई दिनों तक चला जिसमें शाही फौज मार निहत्थे सतनामी समूह से मात खाती चली जा रही थी। शाही फौज में ये बात भी फैल गई कि सतनामी समूह कोई जादू टोना करके शाही फौज को हरा रहे हैं। इसके लिये औरंगजेब ने अपने फौजियों को कुरान की आयतें लिखे तावीज भी बंधवाए थे लेकिन इसके बावजूद कोई फरक नहीं पड़ा था। लेकिन उन्हें ये पता नहीं था कि सतनामी साधों के पास आध्यात्मिक शक्ती के कारण यह स्थिति थी। चूंकि सतनामी साधों का तप का समय पूरा हो गया था उनमे अद्भुत ताकत और वे गुरू के समक्ष अपना समर्पण कर वीरगति को प्राप्त हुए। बचे हुए सतनामी सैनिक पंजाब,मध्य प्रदेश कि ओर चले गये । मध्यप्रदेश वर्तमान छत्तीसगढ़ मे संत घासीदास जी का जन्म हुआ औऱ वहाँ पर उन्होंने सतनाम पंथ का प्रचार तथा प्रसार किया। गुरू घासीदास का जन्म 1756 में बलौदा बाजार जिले के गिरौदपुरी में एक गरीब और साधारण परिवार में पैदा हुए थे। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर कुठाराघात किया। जिसका असर आज तक दिखाई पड रहा है। उनकी जयंती हर साल पूरे छत्तीसगढ़ में 18 दिसम्बर को मनाया जाता है।
गुरु घासीदास समाज में जातिगत भेदभाव और भाईचारे की कमी को देखकर बहुत दुखी थे। वह समाज को इससे मुक्त करने का प्रयास करता रहा। लेकिन उसे इसका कोई हल नजर नहीं आ रहा था। सत्य की खोज के लिए उन्होंने गिरौदपुरी के जंगल में छाता पहाड़ पर एक समाधि की स्थापना की, इस बीच गुरुघासीदास जी ने गिरौदपुरी में अपना आश्रम बनाया और सत्य और ज्ञान की खोज के लिए सोनाखान के जंगलों में लंबी तपस्या भी की।
गुरु घासीदास ने सतनाम धर्म की स्थापना की और सतनाम धर्म के सात सिद्धांत दिए।
सतनामी समुदाय 1950 से आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ा होने के कारण अनुसूचित जाति में शामिल है।
गुरू घासीदास की शिक्षा
गुरु घासीदास बाबा जी की शिक्षा दीक्षा के संबंध में दी गई सारी जानकारी भ्रामक है। उन्होंने न किसी से शिक्षा प्राप्त की और न ही उनका कोई गुरु था।
गुरु घासीदास बाबाजी ने समाज में व्याप्त जातिगत असमानताओं को नकारा। उन्होंने ब्राह्मणों के वर्चस्व को खारिज कर दिया और कई वर्णों में विभाजित जाति व्यवस्था का विरोध किया। उनका मानना था कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति का सामाजिक रूप से समान दर्जा है। गुरु घासीदास ने मूर्तियों की पूजा पर रोक लगा दी। उनका मानना था कि उच्च जाति के लोगों और मूर्ति पूजा के बीच गहरा संबंध है।
गुरु घासीदास पशुओं से भी प्रेम करना सिखाते थे। वह उनके साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार करने के खिलाफ था। सतनाम पंथ के अनुसार गायों को खेती के काम में नहीं लाना चाहिए। गुरु घासीदास के संदेशों का समाज के पिछड़े वर्ग में गहरा प्रभाव पड़ा। 1901 की जनगणना के अनुसार उस समय करीब 4 लाख लोग सतनाम पंथ से जुड़ चुके थे और गुरु घासीदास के अनुयायी थे। छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी वीर नारायण सिंह पर गुरु घासीदास के सिद्धांतों का गहरा प्रभाव पड़ा। पंथी गीतों और नृत्यों के माध्यम से गुरु घासीदास और उनकी जीवनी के संदेश भी व्यापक रूप से प्रसारित किए गए। इसे छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध लोक विधा भी माना जाता है।
सात शिक्षाएँ
सत्गुरू घासीदास जी की सात शिक्षाएँ हैं-
- सत्य एवं अहिंसा
- धैर्य
- लगन
- करूणा
- कर्म
- सरलता
- व्यवहार
गुरु घासीदास विश्वविद्यालय
गुरु घासीदास विश्वविद्यालय भारत का एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है। इसकी स्थापना 16 जून 1983 को बिलासपुर, तत्कालीन मध्य प्रदेश में हुई थी। मध्य प्रदेश के विभाजन के बाद बिलासपुर छत्तीसगढ़ में शामिल हो गया। संसद में पेश केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम 2009 के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा जनवरी 2009 में इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया था।
औपचारिक रूप से राज्य विधानमंडल के एक अधिनियम द्वारा स्थापित गुरु घासीदास विश्वविद्यालय (जीजीयू) का औपचारिक रूप से उद्घाटन 16 जून 1983 को हुआ था। यह भारतीय विश्वविद्यालयों के संघ और राष्ट्रमंडल विश्वविद्यालयों के संघ का एक सक्रिय सदस्य है। विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (NAAC) से B+ के रूप में मान्यता प्राप्त है। सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर क्षेत्र में स्थित, विश्वविद्यालय का नाम महान संत गुरु घासीदास (17 वीं शताब्दी में पैदा हुए) के सम्मान में उचित रूप से रखा गया है, जिन्होंने दलितों, सभी सामाजिक बुराइयों और समाज में व्याप्त अन्याय के खिलाफ एक अथक संघर्ष किया। विश्वविद्यालय एक आवासीय सह सम्बद्ध संस्था है, इसका अधिकार क्षेत्र छत्तीसगढ़ राज्य का बिलासपुर राजस्व संभाग है।