PUBLISHED BY : Vanshika Pandey
श्रावण मास देवाधिदेव महादेव को बहुत प्रिय है। यह भी कहा गया है कि ‘श्रवणे पूज्यत शिवम्’। यही कारण है कि भक्त इस माह में अपने आराध्य को प्रसन्न करने के लिए यात्रा निकालते हैं, जिसे कांवर यात्रा 2022 कहा जाता है। आइए आपको बताते हैं आखिर क्या है कांवर यात्रा? कांवर यात्रा कब शुरू हुई और कांवर यात्रा के बारे में क्या मान्यताएं हैं?
ज्योतिषाचार्य पंडित कल्कि राम बताते हैं कि कांवर यात्रा की शुरुआत के बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं। यह सतयुग में हुआ था, जब देवताओं और राक्षसों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था। दरअसल, देवताओं और राक्षसों के उस मंथन में कई रत्नों के आगे विष निकला, जो भगवान शिव ने लिया था। भगवान शिव ने विष को अपने कंठ में धारण कर लिया, जिससे भोलेनाथ विष की तपन से व्याकुल हो उठे। भगवान शिव को इस अवस्था में देख देवताओं ने कांवर के द्वारा पवित्र नदियों से जल लाकर भगवान शिव का जलाभिषेक करना शुरू किया, तब शिव शांत हुए और वहीं से कांवर यात्रा शुरू हुई।
भगवान परशुराम ने पृथ्वी पर कांवड़ियों की शुरुआत की, भगवान परशुराम ने गढ़मुक्तेश्वर से जल लाया और पूरे महादेव पर जलाभिषेक किया, जो आज बागपत में स्थित है। तभी से सभी सनातन धर्म के लोग अपनी सुविधानुसार कांवड़ यात्रा का आयोजन करते हैं।
जानिए कितने प्रकार की होती है कांवड़ यात्रा
ज्योतिषाचार्य कल्कि राम बताते हैं कि कांवर यात्रा तीन प्रकार की होती है, लेकिन वर्तमान में कई प्रकार की कांवर यात्रा निकाली जा रही है।
- सामान्य कांवर यात्रा:
सामान्य कांवड़ यात्रा में श्रद्धालु अपनी सुविधानुसार पैदल चलते हुए कांवड़ यात्रा निकालते हैं.
- डाक कांवड़ यात्रा :
डाक कावड़ यात्रा में झांकी सजाई जाती है, शिव भक्त कांवड़ की यात्रा को बड़ी धूमधाम से गाते और नाचते हुए निकालते हैं.
- खारी कावड़ यात्रा:
खारी कावड़ यात्रा बहुत कठिन यात्रा है, जो यात्रा करते हैं वे कहीं रुकते नहीं हैं, वे लगातार चलते रहते हैं.
जानिए क्या हैं कावड़ यात्रा के नियम?
कांवड़ यात्रा के दौरान भक्तों को सात्विक भोजन करना होता है। मांस और शराब आदि के सेवन से बचना होगा। विश्राम के समय कांवड़ को किसी पेड़ या किसी के सहारे लटकाना होता है। यात्रा के दौरान कांवड़ को कहीं भी जमीन पर नहीं रखा जाता है। कांवड़ यात्रा के दौरान मंदिर तक पैदल चलना पड़ता है जहां जलाभिषेक का संकल्प होता है। कांवड़ यात्रा के नियमों के साथ संपन्न होने पर भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को मनचाहा वरदान देते हैं।