हरतालिका तीज, एक हिन्दू त्योहार है जो भारत में मनाया जाता है। यह त्योहार भारतीय महिलाओं द्वारा मनाया जाता है, जहां वे अपने पति की लंबी और स्वस्थ जीवन की कामना करती हैं। यह तीज त्योहार श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं और पूजा-अर्चना करती हैं। यह तीज त्योहार सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण है और महिलाओं की समृद्धि, सौभाग्य और सुख की कामना को प्रकट करता है।
Hartalika Teej 2023 : हरतालिका तीज के नियम
हरतालिका तीज का व्रत मान्यताओं और परंपराओं के अनुसार माना जाता है। यहां हरतालिका तीज व्रत के कुछ महत्वपूर्ण नियम दिए जाते हैं:
- व्रत का आरंभ: हरतालिका तीज का व्रत सुबह सूर्योदय के समय शुरू किया जाता है और रात्रि को चांद्रोदय तक रखा जाता है।
- निषिद्ध आहार: व्रत के दौरान अन्न और दूध की सेवन से बचना चाहिए। खाद्य पदार्थों में नमक और हल्दी का उपयोग भी नहीं करना चाहिए।
- व्रत की पूजा: हरतालिका तीज के दिन माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा की जाती है। इसके लिए विशेष धार्मिक कथाएं सुनी जाती हैं और पूजा-अर्चना की जाती है।
- व्रत का निर्जलीकरण: यह व्रत निर्जलीकरण व्रत होता है, जिसका अर्थ है कि व्रती इस दिन पानी नहीं पीते हैं।
- मनोकामना: व्रती महिला अपने पति और परिवार के लिए आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करती हैं और माता पार्वती की कृपा के लिए प्रार्थना करती हैं।
Hartalika Teej 2023 : तीज की शुरुआत कैसे हुई?
हरतालिका तीज की शुरुआत की कथा माता पार्वती, महादेव (भगवान शिव) और उनके मित्र नारद मुनि के संबंध में है। इस कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती को नारद मुनि ने बताया कि उन्हें महादेव के रूप में पति पाने के लिए कड़ी तपस्या करनी होगी। पार्वती ने इस सलाह का पालन किया और वहीं से तीज का व्रत आरम्भ हुआ।
पार्वती ने नियमित रूप से अम्बिका वन में उपवास रखा, आग्नेयी धूप लगाई और गंगा जल से अपने शरीर को स्नान किया। विशेष आदित्य पूजा के बाद, उन्होंने अपने हृदय में भगवान शिव का विवेक और व्रत के महत्व को ध्यान में रखते हुए उनकी पूजा की। व्रती महिलाएं पार्वती की कथा सुनकर उनके पतिव्रत धर्म को मान्यता के साथ आदर्श बनाने की कामना करती हैं।
इस प्रकार, हरतालिका तीज की शुरुआत माता पार्वती के व्रत के रूप में हुई और यह व्रत महिलाओं के पति और परिवार की खुशहाली और सुख-शांति की कामना के साथ मनाया जाता है।
Hartalika Teej 2023 : हरतालिका तीज मनाने का मुख्य कारण
हरतालिका तीज मनाने का मुख्य कारण एक पतिव्रता व्रत के रूप में है, जिसमें महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-शांति की कामना करती हैं। इस व्रत के दौरान महिलाएं माता पार्वती की पूजा और उनकी कथा का पाठ करती हैं, जिससे वे अपने पति के लंबे आयु और खुशहाली की कामना करती हैं। यह व्रत माता पार्वती के पति भगवान शिव की कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त करने का एक माध्यम माना जाता है।
इसके अलावा, हरतालिका तीज का महत्व और मनाने का कारण यह भी है कि यह व्रत शिव-पार्वती के प्रेम के प्रतीक है। माता पार्वती ने अपने पति भगवान शिव को पाने के लिए विशेष तपस्या की थी और उनकी पूजा की थी। इसलिए, यह त्योहार माता पार्वती के पति के प्रति उनकी भक्ति और प्रेम का प्रतीक है और यह उनके प्रेम के आदर्श को मनाने का एक उत्कृष्ट अवसर है।
इस प्रकार, हरतालिका तीज माता पार्वती की पूजा, पतिव्रता व्रत और उनके प्रेम का प्रतीक होने के कारण मनाया जाता है।
Hartalika Teej 2023 : व्रत का महत्व
हरतालिका तीज व्रत का महत्व हिन्दू धर्म में विशेष मान्यताओं और महत्वपूर्ण आठार्यों के कारण है। यह व्रत माता पार्वती और भगवान शिव के प्रेम, सौभाग्य और पति-पत्नी के रिश्ते को समर्पित है। इसके अलावा, इस व्रत का महत्व निम्नलिखित कारणों से होता है:
- पतिव्रता के प्रतीक: हरतालिका तीज व्रत महिलाओं के द्वारा पतिव्रता के प्रतीक के रूप में मान्यता प्राप्त है। महिलाएं इस व्रत के द्वारा अपने पति की लंबी उम्र, सौभाग्य और सुख की कामना करती हैं।
- माता पार्वती की तपस्या: हरतालिका तीज व्रत माता पार्वती द्वारा भगवान शिव को पाने के लिए की गई तपस्या का प्रतीक है। माता पार्वती ने इस व्रत के द्वारा भगवान शिव को प्राप्त किया था।
- सौभाग्य और सुख की प्राप्ति: हरतालिका तीज व्रत के द्वारा माता पार्वती की कृपा और आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। इसके माध्यम से महिलाएं अपने पति और परिवार के लिए सौभाग्य, सुख, और प्रेम की प्राप्ति करती है
Hartalika Teej 2023 : हरतालिका तीज में क्या पहनना चाहिए?
व्रत के दिन आपको विशेष ध्यान देना चाहिए और निम्नलिखित नियमों का पालन करना चाहिए:
- साड़ी पहनें: व्रत के दिन मायके से आई साड़ी पहनें। हरे रंग की साड़ी या लाल रंग की साड़ी पहन सकती हैं, क्योंकि ये रंग सौभाग्य और सुख के प्रतीक होते हैं।
- श्रृंगार करें: व्रत के दिन अच्छे से श्रृंगार करें। इससे आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा और आपका मन प्रसन्न रहेगा।
- मंगल पूजा करें: शुभ मुहूर्त में माता पार्वती, भगवान शिव और भगवान गणेश की पूजा करें। इसके लिए पंडित या पूजा करने का ज्ञान रखने वाले व्यक्ति से सलाह लें और पूजा का विधान ध्यान से करें।
- तीज व्रत की कथा सुनें: व्रत के दिन तीज व्रत की कथा सुनें। इसके माध्यम से आप माता पार्वती और भगवान शिव की कथा सुनकर उनके बारे में अधिक जान सकते हैं और उनके कृपा और आशीर्वाद की प्राप्ति कर सकते हैं।
Hartalika Teej 2023 : हरतालिका तीज व्रत कथा
श्री भोलेशंकर बोले- हे गौरी! पर्वतराज हिमालय पर स्थित गंगा के तट पर तुमने अपनी बाल्यावस्था में बारह वर्षों तक अधोमुखी होकर घोर तप किया था। इतनी अवधि तुमने अन्न न खाकर पेड़ों के सूखे पत्ते चबा कर व्यतीत किए। माघ की विक्राल शीतलता में तुमने निरंतर जल में प्रवेश करके तप किया। वैशाख की जला देने वाली गर्मी में तुमने पंचाग्नि से शरीर को तपाया। श्रावण की मूसलधार वर्षा में खुले आसमान के नीचे बिना अन्न-जल ग्रहण किए समय व्यतीत किया।
तुम्हारे पिता तुम्हारी कष्ट साध्य तपस्या को देखकर बड़े दुखी होते थे। उन्हें बड़ा क्लेश होता था। तब एक दिन तुम्हारी तपस्या तथा पिता के क्लेश को देखकर नारदजी तुम्हारे घर पधारे। तुम्हारे पिता ने हृदय से अतिथि सत्कार करके उनके आने का कारण पूछा।
नारदजी ने कहा- गिरिराज! मैं भगवान विष्णु के भेजने पर यहां उपस्थित हुआ हूं। आपकी कन्या ने बड़ा कठोर तप किया है। इससे प्रसन्न होकर वे आपकी सुपुत्री से विवाह करना चाहते हैं। इस संदर्भ में आपकी राय जानना चाहता हूं।
नारदजी की बात सुनकर गिरिराज गद्गद हो उठे। उनके तो जैसे सारे क्लेश ही दूर हो गए। प्रसन्नचित होकर वे बोले- श्रीमान्! यदि स्वयं विष्णु मेरी कन्या का वरण करना चाहते हैं तो भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है। वे तो साक्षात ब्रह्म हैं। हे महर्षि! यह तो हर पिता की इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख-सम्पदा से युक्त पति के घर की लक्ष्मी बने। पिता की सार्थकता इसी में है कि पति के घर जाकर उसकी पुत्री पिता के घर से अधिक सुखी रहे।
तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारदजी विष्णु के पास गए और उनसे तुम्हारे ब्याह के निश्चित होने का समाचार सुनाया। मगर इस विवाह संबंध की बात जब तुम्हारे कान में पड़ी तो तुम्हारे दुख का ठिकाना न रहा।
म्हारी एक सखी ने तुम्हारी इस मानसिक दशा को समझ लिया और उसने तुमसे उस विक्षिप्तता का कारण जानना चाहा। तब तुमने बताया – मैंने सच्चे हृदय से भगवान शिवशंकर का वरण किया है, किंतु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी से निश्चित कर दिया। मैं विचित्र धर्म-संकट में हूं। अब क्या करूं? प्राण छोड़ देने के अतिरिक्त अब कोई भी उपाय शेष नहीं बचा है। तुम्हारी सखी बड़ी ही समझदार और सूझबूझ वाली थी।
उसने कहा- सखी! प्राण त्यागने का इसमें कारण ही क्या है? संकट के मौके पर धैर्य से काम लेना चाहिए। नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि पति-रूप में हृदय से जिसे एक बार स्वीकार कर लिया, जीवनपर्यंत उसी से निर्वाह करें। सच्ची आस्था और एकनिष्ठा के समक्ष तो ईश्वर को भी समर्पण करना पड़ता है। मैं तुम्हें घनघोर जंगल में ले चलती हूं, जो साधना स्थली भी हो और जहां तुम्हारे पिता तुम्हें खोज भी न पाएं। वहां तुम साधना में लीन हो जाना। मुझे विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे।
तुमने ऐसा ही किया। तुम्हारे पिता तुम्हें घर पर न पाकर बड़े दुखी तथा चिंतित हुए। वे सोचने लगे कि तुम जाने कहां चली गई। मैं विष्णुजी से उसका विवाह करने का प्रण कर चुका हूं। यदि भगवान विष्णु बारात लेकर आ गए और कन्या घर पर न हुई तो बड़ा अपमान होगा। मैं तो कहीं मुंह दिखाने के योग्य भी नहीं रहूंगा। यही सब सोचकर गिरिराज ने जोर-शोर से तुम्हारी खोज शुरू करवा दी।
इधर तुम्हारी खोज होती रही और उधर तुम अपनी सखी के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन थीं। भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र था। उस दिन तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण करके व्रत किया। रात भर मेरी स्तुति के गीत गाकर जागीं। तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन डोलने लगा। मेरी समाधि टूट गई। मैं तुरंत तुम्हारे समक्ष जा पहुंचा और तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर तुमसे वर मांगने के लिए कहा।
तब अपनी तपस्या के फलस्वरूप मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा – मैं हृदय से आपको पति के रूप में वरण कर चुकी हूं। यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर आप यहां पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए।
तब मैं ‘तथास्तु’ कह कर कैलाश पर्वत पर लौट आया। प्रातः होते ही तुमने पूजा की समस्त सामग्री को नदी में प्रवाहित करके अपनी सहेली सहित व्रत का पारणा किया। उसी समय अपने मित्र-बंधु व दरबारियों सहित गिरिराज तुम्हें खोजते-खोजते वहां आ पहुंचे और तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या का कारण तथा उद्देश्य पूछा। उस समय तुम्हारी दशा को देखकर गिरिराज अत्यधिक दुखी हुए और पीड़ा के कारण उनकी आंखों में आंसू उमड़ आए थे।
तुमने उनके आंसू पोंछते हुए विनम्र स्वर में कहा- पिताजी! मैंने अपने जीवन का अधिकांश समय कठोर तपस्या में बिताया है। मेरी इस तपस्या का उद्देश्य केवल यही था कि मैं महादेव को पति के रूप में पाना चाहती थी। आज मैं अपनी तपस्या की कसौटी पर खरी उतर चुकी हूं। आप क्योंकि विष्णुजी से मेरा विवाह करने का निर्णय ले चुके थे, इसलिए मैं अपने आराध्य की खोज में घर छोड़कर चली आई। अब मैं आपके साथ इसी शर्त पर घर जाऊंगी कि आप मेरा विवाह विष्णुजी से न करके महादेवजी से करेंगे।
गिरिराज मान गए और तुम्हें घर ले गए। कुछ समय के पश्चात शास्त्रोक्त विधि-विधानपूर्वक उन्होंने हम दोनों को विवाह सूत्र में बांध दिया।
हे पार्वती! भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के फलस्वरूप मेरा तुमसे विवाह हो सका। इसका महत्व यह है कि मैं इस व्रत को करने वाली कुंआरियों को मनोवांछित फल देता हूं। इसलिए सौभाग्य की इच्छा करने वाली प्रत्येक युवती को यह व्रत पूरी एकनिष्ठा तथा आस्था से करना चाहिए।