Joshimath Sinking: इस 1 राज्यों पर भी आ रहा तबाही का बड़ा खतरा..
Joshimath Sinking: इन राज्यों पर भी मंडरा रहा तबाही का बड़ा खतरा, भू-वैज्ञानिक ने दिए ये चार सुझाव
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( PUBLISHED BY – SEEMA UPADHYAY )
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Joshimath Sinking : जोशीमठ में जमीन धंसने का दायरा लगातर बढ़ता जा रहा है। राज्य सरकार अब घरों को चिह्नित करके जमींदोज करने में जुट गई है। इसकी शुरुआत भी मंगलवार से हो गई। जोशीमठ की तरह ही कर्णप्रयाग और उत्तरकाशी में भी भू-धंसाव के मामले सामने आ चुके हैं। नैनीताल के चायना पीक की पहाड़ियों में भी दरारें देखने को मिलीं हैं। अब इसे लेकर खतरा बढ़ता ही जा रहा है। विशेषज्ञों का साफ कहना है कि केवल उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि हिमालयन रेंज के तहत आने वाले बाकी राज्यों पर भी तबाही का बड़ा खतरा मंडरा रहा है।
कहां-कहां मंडरा रहा खतरा?
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इस मुद्दे पर हमने आईआईटी कानपुर के भू-विज्ञान विभाग के प्रोफेसर और भू-वैज्ञानिक प्रो. राजीव सिन्हा से बात की। उन्होंने कहा, ‘इस वक्त पूरा हिमालयन रेंज बारूद के ढेर पर बैठा हुआ है। मतलब पूरे रेंज पर खतरा है। इसमें उत्तराखंड के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश, लेह-लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्से शामिल हैं। उत्तराखंड का पिथौरागढ़, बागेश्वर, उत्तरकाशी, चमोली और रुद्रप्रयाग जिला भूकंप के जोन-5 में आता है।
वहीं, सिस्मिक जोन-4 में ऊधमसिंहनगर, नैनीताल, चंपावत, हरिद्वार, पौड़ी गढ़वाल और अल्मोड़ा शामिल है। देहरादून और टिहरी का हिस्सा दोनों जोन में शामिल है। मतलब उत्तराखंड के लगभग सभी जिलों में प्राकृतिक आपदाओं के आने की आशंका ज्यादा है।’
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उन्होंने आगे कहा, ‘हिमाचल प्रदेश के ज्यादातर क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील और संवेदनशील हैं। लाहौल स्पीति, कांगड़ा, चंबा और शिमला का कुछ क्षेत्र जोन-5 में आता है, जबकि मंडी, बिलासपुर, हमीरपुर, सोलन, ऊना इत्यादि जिलों के ज्यादातर क्षेत्र जोन-4 में आते हैं। जोन-5 अति संवेदनशील तथा जोन-4 संवेदनशील हैं। यहां बार-बार भूकंप के झटके आते रहते हैं।’
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प्रो. सिन्हा के मुताबिक, बार-बार भूकंप के झटके, लैंडस्लाइड और पहाड़ों के अपलिफ्ट होने के चलते इन इलाकों में पहाड़ों के पत्थर कमजोर हो गए हैं। ज्यादातर जगहों पर मलबे के ऊपर लोगों ने घर बना लिए हैं। इसके अलावा कई तरह के हाईड्रो प्रोजेक्ट, सड़क निर्माण और अन्य विकास कार्यों के चलते स्थिति और भी खराब हो चुकी है। बड़ी संख्या में लोगों ने नदियों के पास गांव और बस्ती बसा ली है। अच्छा व्यू पाने के लिए नदियों के किनारे होटल बन गए हैं।
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इन सबके चलते बड़ी तबाही की आशंका ज्यादा बढ़ गई है। विकास के नाम पर सबसे ज्यादा काम उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में ही हुआ है। यहां पहाड़ों को काफी नुकसान पहुंचा है। वहीं, लेह-लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में अभी स्थिति ज्यादा खराब नहीं हुई है। हालांकि, इसके बावजूद पूरे हिमालयन रेंज को ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है।
तो अब क्या करना चाहिए?
1. सर्वे कराकर अतिसंदेवनशील इलाकों की पहचान की जाए
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प्रो. सिन्हा के मुताबिक जोशीमठ, नैनीताल, कर्णप्रयाग और उत्तरकाशी ही नहीं, बल्कि हिमालय के अंतर्गत आने वाले सभी क्षेत्रों की तुरंत खोज की जानी चाहिए। ऐसे स्थानों की जांच कर खतरों को चिन्हित किया जाए। इस तरह, बड़े विनाश के कारण लोगों के जीवन और संपत्ति को होने वाले खतरों को समय रहते रोका जा सकता है।
2. बिना योजना के विकास तुरंत रुके
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“हिमालय में जो भी विकास कार्य चल रहा है उसे तुरंत रोका जाना चाहिए। इस तरह के काम प्लानिंग और रिसर्च के बाद ही किए जाने चाहिए। रिसर्च करने से पता चलेगा कि किस जगह पर क्या और कितना काम किया जा सकता है।
3. घाटी पर स्टडी करके बफर जोन निर्धारित किए जाएं
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उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और अन्य सभी हिमालयी श्रेणियों का अध्ययन तुरंत शुरू किया जाना चाहिए। घाटी को बफर जोन में बांटा जाए। इसका अध्ययन करने के बाद यह निर्धारित किया जाना चाहिए कि नदी के किनारे संवेदनशील क्षेत्र कितनी दूर है, जहां किसी भी प्रकार के निर्माण संशोधनों को प्रतिबंधित करना होगा। अगर अभी ऐसा नहीं किया गया तो जोशीमठ और कर्णप्रयाग जैसे अन्य कई इलाकों में ऐसी घटनाएं हो सकती हैं.
4. पहाड़ों पर गांव और कस्बे सुनियोजित तरीके से बसाए जाएं
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कहा जाता है कि घाटी का अध्ययन करने के बाद उसकी रिपोर्ट के अनुसार पहाड़ों में कहीं भी गाँव और कस्बे स्थापित कर देने चाहिए। यह जरूरी नहीं है कि जब तक लंबे समय तक भूकंप या भूस्खलन नहीं हुआ है, तब तक यह एक सुरक्षित जगह होगी।
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