PUBLISHED BY : VANSHIKA PANDEY
बस्तर की सबसे पूजनीय देवी को समर्पित दंतेश्वरी मां मंदिर , 52 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। माना जाता है कि देवी सती का दांत यहां गिरा था, इसलिए इसका नाम दंतेवाड़ा पड़ा।
विश्व का 52वां शक्तिपीठ छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल के दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय में स्थित है। इस शक्ति पीठ के बारे में एक प्राचीन कथा बताई जाती है। कहा जाता है कि सतयुग में जब राजा दक्ष ने यज्ञ किया तो उन्होंने भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया। इस पर भगवान शंकर ने क्रोधित होकर तांडव नृत्य किया।
चूँकि सती राजा दक्ष की पुत्री थीं, इसलिए उन्होंने अपने पति के अपमान से क्रोधित होकर अपने पिता के यज्ञ कुंड में स्वयं को झोंक दिया। जब भगवान शंकर को इस बात का पता चला तो उन्होंने सती के मृत शरीर को गोद में लिया और पूरे ब्रह्मांड की परिक्रमा करने लगे। भगवान शिव के इस क्रोधित रूप में कयामत की आशंका देखकर भगवान विष्णु ने चक्र चलाया और सती के शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। इस दौरान जहां-जहां सती के अवशेष गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना की गई। दंतेवाड़ा उनमें से एक है। कहा जाता है कि यहां सती के दांत गिरे थे।
शक्तिपीठ का इतिहास
केंद्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार यहां माता सती का दांत गिरा था, इसलिए इस स्थान को पहले दंतेवाला और अब दंतेवाड़ा के नाम से जाना जाता था। नदी के तट को आठ भैरव भाइयों का निवास स्थान माना जाता है, इसलिए यह स्थान तांत्रिकों की साधना स्थली भी है। कहा जाता है कि आज भी कई तांत्रिक पर्वत की गुफाओं में तंत्र विद्या की साधना कर रहे हैं। यहां नलयुग से लेकर छिंदक नाग वंश काल तक की दर्जनों मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं। मां दंतेश्वरी को बस्तर राजघराने की कुलदेवी माना जाता है, लेकिन अब ये पूरे बस्तर के लोगों की अधिष्ठात्री देवी हैं।
10 दिवसीय नवरात्रि
दंतेश्वरी मंदिर दंतेवाड़ा के प्रधान पुजारी हरेंद्रनाथ जिया का कहना है कि हर साल शारदीय और चैत्र नवरात्रि पर यहां हजारों मनोकामना ज्योति कलश जलाए जाते हैं। हजारों की संख्या में श्रद्धालु पैदल ही शक्तिपीठ पहुंचते हैं। दंतेश्वरी मंदिर राज्य का एकमात्र स्थान है जहां फागुन के महीने में 10 दिवसीय आखेत नवरात्रि भी मनाई जाती है, जिसमें हजारों आदिवासी भाग लेते हैं।
मंदिर का निर्माण
स्थित मां दंतेश्वरी का मंदिर देश का 52वां शक्तिपीठ माना जाता है। यहां का सबसे पुराना मंदिर अन्नमदेव ने करीब 850 साल पहले बनवाया था। डांकिनी और शंखिनी नदियों के संगम पर स्थित, इस मंदिर का पुनर्निर्माण लगभग 700 साल पहले वारंगल से आए पांडव अर्जुन वंश के राजाओं द्वारा किया गया था। यहां 1883 तक मानव बलि होती रही है। 1932-33 में दंतेश्वरी मंदिर का दूसरी बार तत्कालीन बस्तर रानी प्रफुल्ल कुमारी देवी ने जीर्णोद्धार कराया था।