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क्या है भगवान श्री कृष्ण और मोरपंख की कहानी ….

PUBLISHED BY : VANSHIKA PANDEY

मान्यताओं के अनुसार एक बार राधा कृष्ण की बांसुरी पर नृत्य कर रही थीं, तभी महल में उनके साथ मोर भी नाचने लगे। इस दौरान एक मोर का पंख नीचे गिर गया। तब श्रीकृष्ण ने इसे अपने मस्तक पर सजाया। वह मोर पंख को राधा के प्रेम का प्रतीक मानते थे। इसलिए कृष्ण के मस्तक पर हमेशा मोर पंख सुशोभित रहता है।


मोर ब्रह्मचर्य का प्रतीक है

श्रीकृष्ण के मोर पंख धारण करने के पीछे एक कथा प्रचलित है कि मोर ही एक ऐसा पक्षी है जो जीवन भर ब्रह्मचारी रहता है। कहा जाता है कि नर मोर के आंसू पीने से मोरनी गर्भवती हो जाती है। इस प्रकार श्री कृष्ण ऐसे पवित्र पक्षी के पंख को अपने मस्तक पर सुशोभित करते हैं।


इस दोष को दूर करने के लिए हम धारण करते हैं

जब श्री कृष्ण नंदगाँव में रहते थे, तब वे अन्य ग्वालों के साथ गायों को चराने के लिए वन में जाया करते थे। उस समय मोर अपने पंख फैलाकर उसके चारों ओर नृत्य करते हैं। तभी से श्री कृष्ण जी को गाय और मोर को पंखों से लगाव हो गया।


भगवान को भी कालसर्प योग था

मोर और नाग में शत्रुता है। यही कारण है कि कालसर्प योग में मोर पंख को अपने पास रखने की सलाह दी जाती है। माना जाता है कि श्रीकृष्ण का भी कालसर्प योग था। भगवान कृष्ण कालसर्प दोष के प्रभाव के लिए हमेशा अपने पास मोर पंख रखते थे।


दुश्मन को खास जगह दी

श्रीकृष्ण अपने मित्र और शत्रु की तुलना नहीं करते। श्रीकृष्ण के भाई बलराम शेषनाग के अवतार थे। मोर और सर्प एक दूसरे के शत्रु हैं। लेकिन कृष्ण के माथे पर लगा मोर पंख यह संदेश देता है कि वे शत्रु को भी विशेष स्थान देते हैं।

Vanshika Pandey

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