छत्तीसगढ़

रायपुर : अन्नदेवी की पूजा का पर्व ’भोजली’

( PUBLISHED BY – SEEMA UPADHYAY )

छत्तीसगढ़ में भोजली पर्व अच्छी फसल की कामना एवं मित्रता के प्रतीक पर्व के रूप में पूरे छत्तीसगढ़ विशेष कर ग्रामीण अंचलो में हर्षाेल्लास के साथ भाद्र मास के कृष्ण पक्ष प्रथम दिवस को मनाया जाता है।
छत्तीसगढ़ में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष नवमी के दिन से भोजली पर्व की तैयारी शुरू हो जाती है। इस दिन महिलाओं द्वारा किसी निश्चित स्थान पर मिट्टी से भरी  बांस की छोटी-छोटी टोकरियों (छत्तीसगढ़ी में चुरकी बोलते है) में फसल मुख्य रूप से गेंहू, धान, जौं आदि के बीज बोया जाता है।
बीजारोपण के पश्चात् प्रतिदिन भोजली के बिरवा (अंकुरण) की सेवा की जाती है, भोजली के ऊपर हल्दी-पानी छिड़का जाता है। प्रत्येक रात्रि में सेवागीत गाया जाता है।
 सेवा गीतों में आरती गीत, स्वागत गीत, जागरण गीत एवं सिराने के गीत प्रमुख हैं। इन सभी गीतों में भोजली स्तुति की जाती है।

वस्तुतः भोजली यानी अन्न की देवी की आराधना का यह पर्व अन्नदाताओं के अच्छी फसल के कामना के लिए मनाया जाता है, ऐसी मान्यता हैं कि अच्छी भोजली उगने पर उस वर्ष कृषि उत्पादन भी बहुत अच्छा होता है। रक्षाबंधन के दूसरे दिन भाद्रपद कृष्णपक्ष प्रथमा को भोजली विसर्जन का कार्यक्रम किया जाता है। इस दिन शाम को किशोरी बालिका, महिलाओं द्वारा पारम्परिक पोशाक धारण करके विशेष श्रृंगार किया जाता है। कुवारी कन्याओं द्वारा भोजली की सिर में रखकर गाजे बाजे के साथ ग्राम भ्रमण करते हुए नदी या तालाब में विसर्जन के लिए जाते है। इस बीच भोजली गीत गाया जाता है….
देवी गंगा देवी गंगा लहर तुरंगा, लहर तुरंगा,
तुंहरे लहर माता भीजय आठो गंगा, अहोदेवी गंगा ।।

वे पानी बिना मछरी, पवन बिना धाने, सेवा बिना भोजली के तरसे पराने…, 
रिमझिम-रिमझिम सावन के फुहारे, चंदन छिटा देवंव दाई जम्मो अंग तुम्हारे.
गांव के नदी या तालाब पहुचने पर वहाँ भोजली उठाने का कार्य नाते का भाई द्वारा किया जाता है। नदी या तालाब किनारे भोजली माता की अंतिम पूजा और आरती की जाती है तत्पश्चात नदी में विसर्जित कर दिया जाता है। भोजली स्त्रियाँ विसर्जन करने के बाद दुखी होती हैं।

एक चिमटी माखुर कड़क भइगे चूना।
चली दीन्ह भोजली मंदिर भइगे सूना।।

विसर्जन करते समय कुछ बालीयाँ (भोजली) बचा लिये जाते हैं, जिसे बाद में आशीर्वाद स्वरूप घर लाते है व ग्राम के सभी देवालयों चढ़ाया जाता है।

भोजली पर्व को मित्रता का पर्व भी माना जाता है। इस दिन लोगों में भोजली (बालीयां) एकदूसरे से अदला बदली कर भोजली बदने की परम्परा है। इस प्रकार भोजली पर्व अच्छी फसल की कामना व मित्रता कि पर्व के रूप बड़े हर्षाेलास के साथ पूरे छत्तीसगढ़ विशेषकर ग्रामीण अंचल में मानाया जाता है।

Buland Chhattisgarh

Show More

Related Articles

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker