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Buland Chhattisgarh : खुद तो डूबेंगे, CM को भी ले डूबेंगे!

जनसम्पर्क आयुक्त डॉ. रवि मित्तल पर उठ रहे सवालों ने सरकार की मुश्किलें बढ़ाईं

रायपुर। छत्तीसगढ़ का जनसम्पर्क विभाग लगातार विवादों के घेरे में है और इसका केंद्र बने हुए हैं जनसम्पर्क आयुक्त (CPR) डॉ. रवि मित्तल, जिनकी कार्यशैली को लेकर उठ रहे आरोप अब सीधे मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय तक राजनीतिक दबाव पहुँचाने लगे हैं। सरकारी हलकों में यह कड़वा वाक्य तेजी से घूम रहा है—“खुद तो डूबेंगे, CM को भी ले डूबेंगे!” क्योंकि डॉ. मित्तल पर उठते विवाद अब केवल विभागीय मुद्दा नहीं रह गए हैं, बल्कि सरकार की छवि, मीडिया संबंध और राजनीतिक स्थिरता से सीधे जुड़ रहे हैं।

CM के ‘भरोसे के आदमी’ पर बढ़ता दबाव


डॉ. मित्तल की नियुक्ति मुख्यमंत्री के सीधे विश्वास से जुड़ी मानी गई थी। लेकिन अब यही भरोसा राजनीतिक गलियारों में आलोचना का कारण बना हुआ है।
वरिष्ठ अधिकारी, पत्रकार संगठनों और राजनीतिक विश्लेषकों का एक बड़ा वर्ग यह कह रहा है कि—
विभागीय निर्णयों ने सरकार की साख को नुकसान पहुँचाया। विज्ञापन नीति पर उठे सवालों ने असंतोष बढ़ाया। और विवादों ने CM की छवि को भी प्रभावित किया है।
कुछ अधिकारियों की ‘ऑफ द रिकॉर्ड’ टिप्पणी में चिंता साफ झलकती है—
“इस तरह के लगातार विवाद सरकार को अनावश्यक राजनीतिक नुकसान पहुँचा रहे हैं।”

वरिष्ठता की अनदेखी और विभागीय विभाजन


जनसम्पर्क विभाग में विवाद की जड़ माना जा रहा है वरिष्ठ अफसरों की उपेक्षा।
सूत्र बताते हैं कि तारण प्रकाश सिन्हा, दीपांशु काबरा, सोनमणि बोरा और सुकुमार टोप्पो जैसे अनुभवी अधिकारियों को दरकिनार कर अपेक्षाकृत जूनियर अधिकारी को शीर्ष पद पर नियुक्त करने से प्रशासनिक असंतुलन पैदा हुआ।
विभाग के भीतर अब दो स्पष्ट धड़े दिखाई देने लगे हैं। कई अधिकारी कहते हैं कि वर्तमान परिस्थिति “अप्राकृतिक और असहज” बन चुकी है।

विज्ञापन नीति, पारदर्शिता और मीडिया असंतोष


पिछले कुछ महीनों में विज्ञापन वितरण को लेकर पारदर्शिता, अनुशासन, और चयन प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठे हैं। छोटे–मंझोले अख़बारों व पोर्टलों का आरोप है कि उन्हें जानबूझकर नजरअंदाज किया जा रहा है, जबकि कुछ चयनित संस्थानों को बढ़त मिल रही है। पत्रकार संगठनों का कहना है कि विभाग की यह नीति “निष्पक्ष शासन की छवि को कमजोर कर रही है।”
इन्हीं मुद्दों के कारण प्रदेशभर के पत्रकारों का एक बड़ा वर्ग संगठित होता दिख रहा है।

सत्ता और संगठन की बेचैनी


सत्तारूढ़ दल में भी इस मुद्दे पर बेचैनी बढ़ी है। सूत्रों के अनुसार, कई वरिष्ठ नेताओं ने शीर्ष नेतृत्व तक संदेश भेजा है कि— डॉ. मित्तल से जुड़े विवाद लगातार सरकार की छवि को नुकसान पहुँचा रहे हैं, और यदि समय रहते सुधार नहीं हुआ तो राजनीतिक परिणाम गंभीर हो सकते हैं।
एक वरिष्ठ नेता ने ऑफ द रिकॉर्ड कहा— “यह विवाद अब प्रशासनिक नहीं रहा, यह राजनीतिक समस्या बन चुका है।” मामला अब रायपुर से निकलकर भोपाल और दिल्ली तक चर्चा का विषय बन गया है।

सरकार के सामने सबसे बड़ा सवाल


अब राजनीतिक हलकों में तीन बड़े सवाल गूंज रहे हैं—
क्यों सरकार एक अधिकारी की कार्यशैली की कीमत पर अपनी साख दांव पर लगा रही है?
जब सत्ता और संगठन दोनों असहज हैं तो चुप्पी क्यों?
क्या बढ़ती पत्रकार लामबंदी आने वाले समय में बड़ा राजनीतिक संकट खड़ा कर सकती है?
विवाद का केंद्र चाहे कोई हो, लेकिन संकेत साफ हैं—
जनसम्पर्क आयुक्त डॉ. रवि मित्तल पर उठते सवाल अब सीधे मुख्यमंत्री की छवि और सरकार के भरोसे पर असर डालते दिख रहे हैं।

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