रायपुर । विवेकानंद नगर संभवनाथ जैन मंदिर में चातुर्मासिक प्रवचनमाला जारी है। गुरुवार को तपस्वी मुनिश्री प्रियदर्शी विजयजी म.सा. ने पाप से बचने की बात कही। मुनिश्री ने जीवन में पाप का विस्तार घटाने, पाप का वॉल्यूम घटाने, पाप की फ्रीक्वेंसी घटाने और पाप की वैरायटी घटाने के चार स्टेज समझाए।
मुनिश्री ने पाप भीरूता के बारे में आगे बताते हुए कहा कि जीवन में चार स्टेज पर जाकर आप पाप को घटा सकते हो।
(1) पाप के विस्तार को घटाओ अर्थात जो सामाजिक दृष्टि में पाप नहीं गिना जाता लेकिन धार्मिक दृष्टि में पाप है, उसे मित्र वर्ग आदि के साथ सेवन करने में क्षोभ भले ही ना हो परंतु पारिवारिक स्तर पर या व्यक्तिगत स्तर पर उसका जीवन में त्याग करो, क्योंकि जिस कार्य को समूह में सामाजिक स्तर पर करना पड़ रहा है उसे अपने व्यक्तिगत जीवन में तिलांजलि दो।
(2) पाप का वॉल्यूम घटाओ-जिस तरह व्यक्ति के सिर पर उधारी चुकाने का भार हमेशा रहता है और किस तरह से उसे कम किया जाए ऐसा व्यक्ति हमेशा सोचता रहता है बस उसी तरह जीवन में जो भी छोटे-बड़े पाप हैं उन पापों के लिए हमेशा मन मे यही विचार होना चाहिए, कैसे वह कम किए जाएं ,ऐसा विचार करके पाप का वॉल्यूम घटाते रहना।
(3) पाप की फ्रीक्वेंसी कम करो- जो जीवन में व्यसन सिगरेट, शराब, गुटखा आदि के रूप में पाप है जो आपके पीछे लगे हैं ऐसे उन पापों के पीछे आप मत भागो और जो पीछे लगे हैं उनके भी क्वांटिटी मिनिमाइज करते जाओ।
(4) पाप की वैरायटी को कम करो- उसके लिए आपको पाप के रूप में देखो और उसमें इंटरेस्ट काम करते जाओ क्योंकि पाप तो पाप रूप है लेकिन पाप का रस वह महापाप रूप है।
अंत में मुनिश्री ने बताया कि धर्म के साथ हमारा संबंध किस तरह का होना चाहिए। (1) संबंध आहार जैसा हो तो मात्र भूख लगने पर जैसे भोजन ग्रहण किया जाता है उसी तरह धर्म का सेवन भी जीवन में जरूरत के स्थान पर रहेगा। (2) संबंध दवा जैसा हो तो दवा जिस तरह मात्र बीमारी में ली जाती है इस तरह धर्म भी अत्यंत कम समय के लिए जीवन में रहेगा। (3) संबंध हवा के जैसे हो तो हवा के बिना जैसे कोई भी प्राणी जीवित नहीं रहता इस तरह धर्म के बिना भी नहीं रह सके, ऐसा धर्म का स्थान हमारे जीवन में होना चाहिए।