समुद्र मंथन में कुल 14 रत्न निकले थे। इन सभी रत्नों में जीवन प्रबंधन के सूत्र भी सीख सकते हैं। इन सूत्रों को अपनाने से हमारे जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। जानते हैं आख़िर कौन से है वो 14 रत्न
हलाहल (विष), काम धेनु गाय , उच्चैश्रवा घोड़ा , ऐरावत हाथी , कौस्तुभ मणि , कल्पवृक्ष ,रंभा” अप्सरा ,देवी लक्ष्मी, वारूणी देवी ,चन्द्रमा रत्न , पारिजात वृक्ष”, भगवान् धन्वन्तरि , अमृत कलश
1. Samudra Manthan 14 रत्न : हलाहल (विष)
समुद्र मंथन से सबसे पहले जल का हलाहल विष निकला, जिसकी ज्वाला बहुत तीव्र थी। हलाहल विष की ज्वाला से सभी देवता तथा दैत्य जलने लगे और उनकी चमक फीकी पड़ने लगी। इस पर सभी ने मिलकर भगवान शंकर की प्रार्थना की। देवताओं तथा असुरों की प्रार्थना पर महादेव शिव उस विष को हथेली पर रख कर उसे पी गये, किन्तु देवी पार्वती ने विष को उनके कण्ठ से नीचे नहीं उतरने दिया। अतः हलाहल विष के प्रभाव से शिव का कण्ठ नीला पड़ गया।
2. Samudra Manthan 14 रत्न : काम धेनु गाय
समुद्र मंथन से कामधेनु गाय बाहर निकलीl वह अग्निहोत्र (यज्ञ) की सामग्री उत्पन्न करने वाली थी। इसलिए ब्रह्मवादी ऋषियों ने उसे ग्रहण कर लिया। कामधेनु का वर्णन पौराणिक गाथाओं में एक ऐसी चमत्कारी गाय के रूप में मिलता है, जिसमें दैवीय शक्तियाँ थीं और जिसके दर्शन मात्र से ही लोगो के दुःख व पीड़ा दूर हो जाती थी। यह कामधेनु जिसके पास होती थी, उसे हर तरह से चमत्कारिक लाभ होता था।
3. Samudra Manthan 14 रत्न : उच्चै:श्रवा घोड़ा
समुद्र मंथन के दौरान तीसरे नंबर पर उच्चैश्रवा घोड़ा निकला। पौराणिक धर्म ग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इसे देवराज इन्द्र को दे दिया गया था। उच्चैश्रवा के कई अर्थ हैं, जैसे- जिसका यश ऊँचा हो, जिसके कान ऊँचे हों अथवा जो ऊँचा सुनता हो]
4. Samudra Manthan 14 रत्न : ऐरावत हाथी
समुद्र मंथन के दौरान चौथे नंबर पर ऐरावत हाथी निकला। ऐरावत देवताओं के राजा इन्द्र के हाथी का नाम है। समुद्र मंथन से प्राप्त रत्नों के बँटवारे के समय ऐरावत को इन्द्र को दे दिया गया था। ऐरावत को शुक्लवर्ण और चार दाँतों वाला बताया गया है।
5. Samudra Manthan 14 रत्न : कौस्तुभ मणि
कौस्तुभ मणि प्रकट हुआ जिसे भगवान विष्णु ने अपने ह्रदय पर धारण कर लियाl यह बहुत ही चमकदार थी और ऐसा माना जाता है कि जहाँ भी यह मणि होती है, वहाँ किसी भी प्रकार की दैवीय आपदा नहीं होती हैl
6. Samudra Manthan 14 रत्न : कल्पवृक्ष
कल्पवृक्ष प्रकट हुआl हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह वृक्ष सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाला वृक्ष थाl देवताओं के द्वारा इसे स्वर्ग में स्थापित कर दिया गयाl
7. Samudra Manthan 14 रत्न : रंभा” अप्सरा
“रंभा” नामक अप्सरा प्रकट हुईl वह सुंदर वस्त्र व आभूषण पहने हुई थीं और उसकी चाल मन को लुभाने वाली थीl वह स्वंय ही देवताओं के पास चलीं गई
8. Samudra Manthan 14 रत्न : देवी लक्ष्मी
देवी लक्ष्मी प्रकट हुईl क्षीरसमुद्र से जब देवी लक्ष्मी प्रकट हुईं, तब वह खिले हुए श्वेत कमल के आसन पर विराजमान थींl उनके श्री अंगों से दिव्य कान्ति निकल रही थी और उनके हाथ में कमल थाl
9. Samudra Manthan 14 रत्न : वारूणी देवी
वारूणी प्रकट हुईl भगवान विष्णु की अनुमति से इसे दैत्यों ने ले लियाl वास्तव में वारूणी का अर्थ “मदिरा” है और यही कारण है कि दैत्य हमेशा मदिरा में डूबे रहते थेl
10. Samudra Manthan 14 रत्न : चन्द्रमा रत्न
समुद्र मंथन के दौरान “चन्द्रमा” प्रकट हुए जिन्हें भगवान शिव ने अपने मस्तक पर धारण कर लियाl
11. Samudra Manthan 14 रत्न : “पारिजात वृक्ष”
समुद्र मंथन के दौरान “पारिजात वृक्ष” प्रकट हुआl इस वृक्ष की विशेषता यह थी कि इसे छूने से ही थकान मिट जाती थीl यह वृक्ष भी देवताओं के हिस्से में चला गयाl
12 . Samudra Manthan 14 रत्न : “पांचजन्य शंख”
समुद्र मंथन के दौरान “पांचजन्य शंख” प्रकट हुआl इसे भगवान विष्णु ने अपने पास रख लियाl इस शंख को “विजय का प्रतीक” माना गया है, साथ ही इसकी ध्वनि को भी बहुत ही शुभ माना गया हैl
13 . Samudra Manthan 14 रत्न : भगवान् धन्वन्तरि
हाथ में अमृतपूर्ण स्वर्ण कलश लिये श्याम वर्ण, चतुर्भुज रूपी भगवान धन्वन्तरि प्रकट हुएl अमृत-वितरण के पश्चात देवराज इन्द्र की प्रार्थना पर भगवान धन्वन्तरि ने देवों के वैद्य का पद स्वीकार कर लिया और अमरावती उनका निवास स्थान बन गयाl बाद में जब पृथ्वी पर मनुष्य रोगों से अत्यन्त पीड़ित हो गए तो इन्द्र ने धन्वन्तरि जी से प्रार्थना की वह पृथ्वी पर अवतार लेंl
14. Samudra Manthan 14 रत्न : अमृत कलश
समुद्र मंथन के दौरान चौदहवां और अंतिम रत्न “अमृत” थाl अमृत का शाब्दिक अर्थ ‘अमरता’ है। भारतीय ग्रंथों में यह अमरत्व प्रदान करने वाले रसायन के अर्थ में प्रयुक्त होता है। यह शब्द सबसे पहले ऋग्वेद में आया है जहाँ यह सोम के विभिन्न पर्यायों में से एक है। अमृत को देखकर दानव आपस में लड़ने लगेl तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर छल पूर्वक देवताओं को अमृत पान करवा दियाl