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जानिये क्या है काशी का शूलटंकेश्वर मंदिर?

( published by – Seema Upadhyay )

शूलटंकेश्वर महादेव भक्तों के सभी कष्ट दूर करते हैं। ऐसा माना जाता है कि जिस तरह मां गंगा की रीढ़ की हड्डी का नाश होता है, उसी तरह शूलटंकेश्वर के दर्शन करने वालों के सारे दुख दूर हो जाते हैं। काशी के दक्षिण में स्थित मंदिर के घाटों से टकराकर गंगा उत्तर दिशा से काशी में प्रवेश करती है।
शुलटंकेश्वर महादेव वाराणसी शहर से 15 किमी दूर माधवपुर गांव में रहते हैं। नंदी इस मंदिर में हनुमान जी, मां पार्वती, भगवान गणेश, कार्तिकेय के साथ विराजमान हैं। मंदिर के पुजारी ने बताया कि माधव ऋषि ने गंगा अवतरण से पहले शिव की पूजा करने के लिए ही यहां एक शिवलिंग की स्थापना की थी।

जानिये कैसे पड़ा इनका नाम शूलटंकेश्वर?

गंगा तट पर तपस्या करने वाले ऋषियों ने इस शिवलिंग का नाम शुल्तंकेश्वर रखा। इसके पीछे यह मान्यता थी कि जिस प्रकार यहां गंगा के कष्ट दूर होते हैं, उसी प्रकार अन्य भक्तों के कष्ट भी दूर होते हैं। यही कारण है कि यहां साल भर भक्त दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन सावन में अपने कष्टों से मुक्ति पाने के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।

पं. काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के सदस्य दीपक मालवीय ने बताया कि पुराणों के संदर्भ में जब गंगा अवतरण के बाद उन्होंने अपने उग्र रूप में काशी में प्रवेश करना शुरू किया तो भगवान शिव ने दक्षिण दिशा में त्रिशूल फेंक कर गंगा को रोक दिया। काशी के ही। भगवान शिव के त्रिशूल से मां गंगा को कष्ट होने लगा।

उसने भगवान से माफी मांगी। भगवान शिव ने गंगा से वचन लिया कि वह काशी को छूते हुए बहेंगी। साथ ही काशी में गंगा स्नान करने वाले किसी भी भक्त को कोई जलीय जीव नुकसान नहीं पहुंचाएगा। जब गंगा ने दोनों शब्दों को स्वीकार कर लिया, तो शिव ने अपना त्रिशूल वापस ले लिया।

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