एक बार नारदजी बैकुंठ में भगवान विष्णु के पास गये। विष्णुजी ने नादरजी से आने का कारण पूछा। नारदजी बोले, ‘‘हे भगवान् आपको पृथ्वीवासी कृपा निधान कहते हैं किन्तु इससे से केवल आपके प्रिय भक्त की तर पाते हैं। साधारण नर नारी नहीं। इसलिए कोई ऐसा उपाय बताईयें जिससे साधारण नर नारी भी आपकी कृपा के पात्र बन जाएँ।’’ इस पर भगवान विष्णु बोले, ‘हे नारद! कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को जो नर नारी व्रत का पालन करते हुए भक्तिपूर्वक मेरी पूजा करेंगे उनको स्वर्ग प्राप्त होगा।’ इसके बाद भगवान विष्णु ने जय-विजय को बुलाकर आदेश दिया कि कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को स्वर्ग के द्वार खुले रखे जायें। भगवान ने यह भी बताया कि इस दिन जो मनुष्य किंचित मात्र भी मेरा नाम लेकर पूजा करेगा उसे बैकुण्ठधाम प्राप्त होगा।
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को यह व्रत किया जाता है। कार्तिक मास की शुक्ल की चतुर्दशी हिन्दू धर्म के लिए पवित्र दिन माना जाता है कि क्योंकि यह दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की पूजा की जाती है। इस दिन भगवान विष्णु और शिव की विधिवत पूजा करके भोग लगायें, तत्पश्चात् पुष्प, धूप, दीप, चन्दन आदि पदार्थों से आरती उतारें।
शास्त्रों में बताया गया है कि बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु और शिव की पूजा एक साथ की जाती है। इसी एक दिन भगवान शिव को तुलसी पत्र अर्पित किया जाता है। ऐसा करने से माता लक्ष्मी भक्तों से प्रसन्न होती हैं। साथ ही इस दिन भगवान विष्णु को बेलपत्र जरूर अर्पित करना चाहिए