
गणेश चतुर्थी भारतीय हिन्दू परंपरा में महत्वपूर्ण है और यह हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाई जाती है। यह पर्व भगवान गणेश की पूजा और आराधना के रूप में मनाया जाता है और लोग इस दिन गणेश जी की कृपा और आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए व्रत रखते हैं।

गणेश चतुर्थी की कहानी में गणेश जी के माता-पिता, पार्वती और शिव, की इच्छा पर गणेश जी को उत्पन्न किया था। एक दिन, पार्वती माता ने सपने में एक पुतला बनाया और उसे प्राण दिया। वो पुतला था गणेश जी। पार्वती माता ने उसे अपने घर के बाहर रख दिया जब वह स्नान करने चली गई।

जब शिव जी अपने घर वापस आए तो उन्हें उनके घर के बाहर खड़े पुतले को देखा और उसके आने का कारण जानने के लिए पुतले के सिर को काट दिया। पार्वती माता वापस आकर दुखी हुई और उन्होंने शिव जी से उनके पुतले को जीवित करने की इच्छा जताई।
शिव जी ने उनकी इच्छा की पूर्ति की और पुतले के सिर को हाथी के सिर से बदल दिया, जिससे पुतला जीवित हो गया और गणेश बन गए। इसके बाद, गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाने का परंपरागत आयोजन होता है, जिसमें भक्त गणेश जी की पूजा, आराधना, और मोदक के भोग का प्रसाद चढ़ाते हैं। यह त्योहार भारत भर में धूमधाम से मनाया जाता है और गणेश जी की कृपा की प्राप्ति के लिए लोग उनकी पूजा करते हैं। गणेश जी को विघ्न विनायक भी कहा जाता है, क्योंकि वे हर प्रकार के विघ्नों को दूर करते हैं और आशीर्वाद देते हैं।
इस तरह, गणेश चतुर्थी एक महत्वपूर्ण हिन्दू पर्व है जो भक्ति और आराधना के माध्यम से गणेश जी की महिमा का आदरणीय तरीके से मनाया जाता है।
श्री धूम्रकेतु रूप मे आयेंगे श्री गणेश

श्री गणेश जी का कलियुगीय भावी अवतार धूम्रकेतु के नाम से विख्यात होगा। कलि के अंत में घोर पापाचार बढ़ जाने पर, देवताओं की प्रार्थना पर सद्धर्म के पुन: स्थापन के लिए वे इस पृथ्वी पर अवतरित होंगे और कलि का विनाश कर सतयुग की अवतारणा करेंगे।
गणेश चतुर्थी का महत्व

गणेश चतुर्थी का महत्व हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण है, और यह पर्व भगवान गणेश की पूजा और आराधना के रूप में मनाया जाता है। इसके कुछ महत्वपूर्ण कारण निम्नलिखित हैं:
- भगवान गणेश की पूजा: गणेश चतुर्थी पर्व का मुख्य उद्देश्य भगवान गणेश की पूजा और आराधना करना है। गणेश जी को विघ्न विनायक कहा जाता है, और वे हर प्रकार के विघ्नों को दूर करने वाले हैं। इसलिए लोग उनकी कृपा और आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए उनकी पूजा करते हैं।
- आराधना के माध्यम से समर्पण: गणेश चतुर्थी पर्व के दिन, भक्त अपने मन, वचन, और क्रियाओं को भगवान गणेश के समर्पित करते हैं। यह पर्व समर्पण और भक्ति का प्रतीक है।

- समाज में एकता का संदेश: गणेश चतुर्थी का त्योहार भारतीय समाज में एकता और सामाजिक समरसता का संदेश देता है। इसे विभिन्न जातियों, समुदायों, और वर्गों के लोग साथ मिलकर मनाते हैं और भगवान गणेश की पूजा करते हैं, जिससे समरसता और भाईचारा प्रमोट किया जाता है।
- आध्यात्मिक महत्व: गणेश चतुर्थी पर्व भगवान गणेश की आराधना के माध्यम से आध्यात्मिक विकास की प्रोत्साहना करता है। यह एक अद्वितीय मौका प्रदान करता है भक्तों को अपने आध्यात्मिक जीवन को सुधारने के लिए।
- सांस्कृतिक महत्व: गणेश चतुर्थी का त्योहार भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है और इसे विभिन्न आराध्यता के रूप में मनाने के साथ विभिन्न रंगीन सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ भी मनाते हैं।
- प्राकृतिक संरक्षण: गणेश चतुर्थी के दौरान, बहुत सारे स्थानों पर गणपति मूर्तियों की स्थापना की जाती है, जिन्हें त्योहार के अंत में नदी में विसर्जित किया जाता है। इसके माध्यम से प्राकृतिक संरक्षण का महत्व भी जागरूक किया जाता है।
गणेश चतुर्थी व्रत कथा भगवान गणेश के महत्वपूर्ण त्योहार के साथ जुड़ी हुई है और यह कथा गणेश चतुर्थी के व्रत के दिन सुनी जाती है। निम्नलिखित है गणेश चतुर्थी का एक प्रसिद्ध कथा:
गणेश जी की कथा

बहुत समय पहले की बात है, माता पार्वती ने अपने सुंदर शरीर से एक पुतला बनाया और उसे प्राण दिया। यह पुतला था गणेश जी का रूप। वो पुतला बड़ा ही सुंदर और विशाल था। माता पार्वती ने उसे बड़े प्यार से पाल-पोस कर बड़ा किया।
एक दिन, माता पार्वती ने गणेश को अपने घर के बाहर खड़े रहने को कहा और उसे आकर्षक दिखने के लिए उसकी देखभाल की। माता पार्वती ने गणेश को कहा, “तू यहाँ खड़ा रहकर खेल, मैं जब तक स्नान करती हूँ, तब तू किसी से मिलने नहीं आएगा।”
इसके बाद, माता पार्वती ने स्नान करना शुरू किया, और वह सभी ब्रह्मांड की सारी शक्तियों को उसमें समाहित कर लिया।
तब एक समय आया, और भगवान शिव अपने घर की ओर लौटे। वह अपने घर के बाहर एक युद्धक्षेत्र में गणेश को देखा, लेकिन वह गणेश को पहचान नहीं पाए, क्योंकि गणेश ने माता पार्वती की आवाज़ में उसके आदर्श सिर का रूप दिया था, जिसके कारण उसकी पहचान में कठिनाइयाँ आई।
शिव जी और गणेश के बीच में एक विवाद शुरू हो गया, और वह बड़े ही गंभीर हो गया। इस विवाद के बाद, गणेश ने अपने आप को बड़े ही महत्वपूर्ण बनाया और अपने माता-पिता के प्रति अपनी अपनी निष्ठा और सेवा की प्रतिज्ञा की। इसके बाद, शिव और पार्वती ने गणेश को अपने ही गर्भ से पैदा किया, और वह उनके अधिपति बने।
इसी कारण, गणेश चतुर्थी को भगवान गणेश की पूजा, आराधना, और व्रत के रूप में मनाने का परंपरागत माध्यम माना जाता है, और लोग इस दिन गणेश जी की महिमा का आदरणीय तरीके से करते हैं। वे गणेश जी की कृपा और आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए व्रत रखते हैं और उनके पूजन में मोदक और अन्य मिठाईयां चढ़ाते हैं।
गणेश जी की आरती

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
एक दंत दयावंत,
चार भुजा धारी ।
माथे सिंदूर सोहे,
मूसे की सवारी ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
पान चढ़े फल चढ़े,
और चढ़े मेवा ।
लड्डुअन का भोग लगे,
संत करें सेवा ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
अंधन को आंख देत,
कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत,
निर्धन को माया ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
‘सूर’ श्याम शरण आए,
सफल कीजे सेवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
दीनन की लाज रखो,
शंभु सुतकारी ।
कामना को पूर्ण करो,
जाऊं बलिहारी ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
इस आरती का गाना गणेश जी की पूजा और आराधना के समय किया जाता है और भक्त इसे भक्ति और श्रद्धा के साथ गाते हैं, जिससे गणेश जी के आशीर्वाद की प्राप्ति होती है।