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शारदीय नवरात्रि भारतीय सभ्यता में बहुत ही महत्वपूर्ण है और इसे धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से मनाया जाता है। इस उत्सव को नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। यह उत्सव वर्ष में दो बार मनाया जाता है – चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि। चैत्र नवरात्रि वसंत ऋतु के आरंभ के समय मनाई जाती है, जबकि शारदीय नवरात्रि शरद ऋतु के आरंभ के समय मनाई जाती है।
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शारदीय नवरात्रि देवी दुर्गा की जयंती के रूप में मनाई जाती है। इस उत्सव के दौरान, लोग माँ दुर्गा की पूजा करते हैं और उनके नौ रूपों की आराधना करते हैं। इन नौ रूपों को नवदुर्गा कहा जाता है और इनमें माँ शैलपुत्री, माँ ब्रह्मचारिणी, माँ चंद्रघंटा, माँ कुष्मांडा, माँ स्कंदमाता, माँ कात्यायनी, माँ कालरात्रि, माँ महागौरी और माँ सिद्धिदात्री शामिल होती हैं।
Shardiya Navratri 2026 : नवरात्रि की कहानी
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नवरात्रि की कई अलग-अलग कहानियां हैं, लेकिन इसकी प्रमुख कहानी है मां दुर्गा की लड़ाई की कहानी। यह कहानी हिंदू पौराणिक ग्रंथ मार्कण्डेय पुराण में बताई गई है।
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अनुसूया और ऋषि कश्यप की एक कन्या थी जिसका नाम सती था। सती ने भगवान शिव से विवाह किया था। उनके विवाह के बाद, सती के पिता दक्ष ने एक बड़ा यज्ञ किया था, लेकिन उसने शिव को यज्ञ में नहीं बुलाया था। सती ने अपने पिता को बताया कि यज्ञ में उनके पति को नहीं बुलाना उचित नहीं है। लेकिन दक्ष ने उसे सुनने से इनकार कर दिया और यज्ञ में शिव को बुलाया नहीं गया।
जब सती यज्ञ स्थल पर पहुंची, तो वह देखा कि यज्ञ के दौरान उनके पिता ने शिव के बारे में गालियां देना शुरू कर दिया था। सती इसका असमर्थन करते हुए अपने शरीर को जल में उतार दिया था।
नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान, प्रत्येक दिन एक विशेष देवी को समर्पित होता है और उसकी पूजा की जाती है। यह देवियां निम्नलिखित हैं:
- पहले दिन (प्रथमा) – शैलपुत्री
- दूसरे दिन (द्वितीया) – ब्रह्मचारिणी
- तीसरे दिन (तृतीया) – चंद्रघंटा
- चौथे दिन (चतुर्थी) – कुष्मांडा
- पांचवे दिन (पंचमी) – स्कंदमाता
- छठवें दिन (षष्ठी) – कात्यायनी
- सातवें दिन (सप्तमी) – कालरात्रि
- आठवें दिन (अष्टमी) – महागौरी
- नौवें दिन (नवमी) – सिद्धिदात्री
ये नौ देवियां नवरात्रि के नौ दिनों में पूजे जाते हैं। प्रत्येक देवी को भक्तों द्वारा अलग-अलग विधियों और रीतियों से पूजा जाता है।
Shardiya Navratri 2026 : Shailputri : शैलपुत्री
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शैलपुत्री माँ देवी नवरात्री के पहले दिन की पूजा की जाती है। इनका नाम “शैल” यानी पहाड़ों का अर्थ होता है जिससे यह स्थान उन्हें प्रदान किया गया है। शैलपुत्री की पूजा विशेष रूप से पशुपति नाथ के अवतार शिव जी को समर्पित होती है।
शैलपुत्री माँ की कहानी अनेक पुराणों में वर्णित है। एक कथा के अनुसार, शैलपुत्री माँ का जन्म राजा हिमवत के घर में हुआ था। वह राजकुमारी पार्वती थी, जो बाद में महादेव शिव की पत्नी बनी। वह बचपन से ही शिवजी के विषय में बहुत उत्सुक थी और उनकी तपस्या और साधना में जुट गई थी।
एक दिन उन्हें यह सुनकर कि शिवजी का ध्यान पाने के लिए आदिशक्ति ने अपने शरीर को दस टुकड़ों में विभाजित कर दिया था, पार्वती ने भी अपने शरीर को दस टुकड़ों में विभाजित कर दिया और उन्होंने उन दस टुकड़ों के नाम शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री
Shardiya Navratri 2026 : Brahmacharini : ब्रह्मचारिणी
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ब्रह्मचारिणी माँ देवी नवरात्रि के दूसरे दिन की पूजा की जाती है। यह माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों में से एक है।
ब्रह्मचारिणी माँ की कहानी पुराणों में वर्णित है। एक कथा के अनुसार, ब्रह्मचारिणी माँ का जन्म राजा हिमवत के घर में हुआ था। वह राजकुमारी पार्वती थी, जो बाद में महादेव शिव की पत्नी बनी। उनके जन्म से ही उन्होंने साधु संतों को देखा था और उन्हें उनके त्याग, तपस्या और उपवास के महत्व के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिला था।
एक दिन उन्हें यह सुनकर कि शिवजी का ध्यान पाने के लिए आदिशक्ति ने अपने शरीर को दस टुकड़ों में विभाजित कर दिया था, पार्वती ने भी अपने शरीर को दस टुकड़ों में विभाजित कर दिया और उन्होंने उन दस टुकड़ों के नाम शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री रखे थे।\
Shardiya Navratri 2026 : Chandraghanta : चंद्रघंटा
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चंद्रघंटा माँ देवी नवरात्रि के तीसरे दिन की पूजा की जाती है। यह माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों में से एक है।
चंद्रघंटा माँ की कहानी पुराणों में वर्णित है। एक कथा के अनुसार, चंद्रघंटा माँ का जन्म उस समय हुआ था जब देवों और असुरों के बीच युद्ध चल रहा था। रक्षक बनने के इच्छुक एक राजकुमार वीरवर्धन नाम का था, जो देवी चंद्रघंटा को प्रेम करता था। वह उसे देवी महागौरी के नाम से भी जाना जाता है।
एक दिन, वीरवर्धन ने देवी चंद्रघंटा को भोजन के लिए आमंत्रित किया। उसने उसे स्वयं खाने के लिए पकवान बनाने को कहा। देवी चंद्रघंटा ने इस आग्रह को स्वीकार कर उन्हें पकवान बनाने की अनुमति दी। जब उसने दस्ताने लेकर पकवान बनाने लगा, तो उसने अपने व्यक्तिगत उपयोग के लिए एक कुंडल दिया जिसमें उसने उसके भाई की पत्नी के साथ रखा था।
Shardiya Navratri 2026 : Kushmanda : कूष्माण्डा
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कूष्माण्डा माँ देवी नवरात्रि के पांचवें दिन की पूजा की जाती है। यह माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों में से एक है।
कूष्माण्डा माँ की कहानी पुराणों में वर्णित है। एक कथा के अनुसार, एक समय के बाद देवी ने एक अत्यंत भयानक रूप धारण किया जिसे कूष्माण्डा माँ के नाम से जाना जाता है। इस रूप में, उनके बाल दोनों हाथों में होते हैं और वे एक शूल उठाती हुई दिखती हैं।
एक कथा के अनुसार, देवी की इस रूप की उत्पत्ति महिषासुर नाम के राक्षस की महत्वपूर्ण भूमिका ने खेली। महिषासुर ने अपनी बहुतायत के कारण स्वर्ग को धमाके से भर दिया था और देवताओं को उससे निपटने में मुश्किल हो रही थी।
इस संकट में देवी ने अपने एक हाथ से कूष्माण्डा माँ का रूप धारण किया और महिषासुर को धमकाकर अंत में उसे मार डाला। कूष्माण्डा माँ का उपयोग महिषासुर को मारने के लिए किया गया था।
Shardiya Navratri 2026 : Skandamta : स्कंदमाता
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स्कंदमाता माँ देवी नवरात्रि के पांचवें दिन की पूजा की जाती है। यह माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों में से एक है।
स्कंदमाता माँ की कहानी पुराणों में वर्णित है। एक कथा के अनुसार, महिषासुर नाम का राक्षस स्वर्ग और पृथ्वी का शासक बन गया था। देवताओं ने उससे निपटने के लिए भगवान शिव और पार्वती को निमंत्रण दिया।
शिव और पार्वती ने अपने दो बेटों कार्तिकेय और गणेश को साथ लिए और महिषासुर को मारने के लिए उत्तर प्रदेश में गये।
कार्तिकेय ने अपनी वाहन सिंह पर सवार थे और उनके साथ बहुत से सेनापति थे। गणेश ने मुख्य सेना के नेता का काम किया था।
महिषासुर ने अपने विशाल सेना को बीच में लगा दिया। कार्तिकेय और उनकी सेना ने महिषासुर की सेना से लड़ाई शुरू की। इस लड़ाई में महिषासुर की सेना हार गई और महिषासुर अकेला रह गया।
Shardiya Navratri 2026 : Katyayni : कात्यायनी
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कात्यायनी माँ देवी नवरात्रि के छठे दिन की पूजा की जाती है। यह माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों में से एक है।
कात्यायनी माँ की कहानी महाभारत में वर्णित है। एक कथा के अनुसार, राजा कात्यायन नाम का एक बहुत ही धार्मिक राजा था। उसके यहां बहुत से ब्राह्मण रहते थे।
एक दिन राजा कात्यायन ने एक ब्राह्मण को अपने घर बुलाया और उससे यज्ञ का आयोजन करने के लिए कहा। ब्राह्मण ने उसे माँ दुर्गा की कृपा को प्राप्त करने के लिए कहा।
फिर उसने अपने घर के समीप एक जंगल में अत्यंत उपवास करना शुरू किया। वहां उसने दस दिन तक अत्यंत सम्पूर्ण उपवास किया और अंत में माँ दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए उसने भगवान शिव को भी आह्वानित किया।
माँ दुर्गा ने उस ब्राह्मण की योग्यता को देखते हुए उसे अपनी संस्थापित कीर्ति लेने के लिए स्वयं को कात्यायनी नाम से प्रकट किया।
Shardiya Navratri 2026 : Kaalratri : कालरात्रि
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कालरात्रि माँ नवरात्रि के सातवें दिन की पूजा की जाती है। यह माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों में से एक है।
कालरात्रि माँ की कहानी पुराणों में वर्णित है। एक दिन, देवों के राजा दक्ष ने अपनी यज्ञ की विधि को संशोधित किया था। वह उन देवों को नहीं बुलाता था जो उससे सहमत नहीं हुए थे, जिसमें माँ पार्वती भी शामिल थीं।
माँ पार्वती ने इसके लिए उसे दोषी माना और अपनी आग ने खुद को स्वयं जलाया। इससे भयभीत होकर दक्ष ने उनकी माँ के शव को वहां से ले जाकर छिपा दिया।
उसी समय माँ दुर्गा ने कालरात्रि माँ का स्वरूप धारण किया और दक्ष के समस्त सेनापति और उसके भगवान भैरव के साथ लड़ाई करने के लिए निकल पड़ी।
Shardiya Navratri 2026 : Mahagauri : महागौरी
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महागौरी माँ नवरात्रि के आठवें दिन की देवी हैं। उन्हें देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों में से एक माना जाता है।
एक बार पार्वती देवी ने अत्यंत साधना की थी जिससे उन्होंने अपना रूप बहुत ही धूमिल बना दिया था। उनका चेहरा अत्यंत अंधकारमय था और उनकी त्वचा बहुत ही काली थी। लोगों को उनसे डर लगता था और वे उनसे दूर ही रहते थे।
एक दिन, भगवान शिव ने उनसे कहा कि उन्हें उस रूप को छोड़ देना चाहिए क्योंकि वह उनकी सुंदरता को छिपा रहता है। फिर उन्होंने उन्हें अपनी आँखों में धुंधलापन हटाने के लिए आगे भेजा।
उसके बाद से पार्वती देवी का रूप बहुत ही सुंदर हो गया था और उन्हें महागौरी कहा जाने लगा। उनकी त्वचा सफेद हो गई थी और वे बहुत ही सुंदर दिखने लगी थीं।
Shardiya Navratri 2026 : Siddhidatri : सिद्धिदात्री
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सिद्धिदात्री माँ नवरात्रि के नौवें दिन की देवी हैं। उन्हें देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों में से एक माना जाता है।
सिद्धिदात्री का अर्थ होता है ‘सिद्धियों की दात्री’। उन्हें पूजने से भक्त को भगवान की कृपा और आशीर्वाद मिलते हैं और उन्हें सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
एक बार, भगवान शिव ने उनसे कहा कि उन्हें उनकी योगशक्ति का दर्शन करना है। सिद्धिदात्री ने अपनी योगशक्ति का दर्शन करवाया और उन्हें उनके महाशक्ति और महासमर्पण की प्राप्ति हुई।
इसी कारण से सिद्धिदात्री माँ को नवरात्रि के नौवें दिन की पूजा की जाती है। उन्हें इस दिन ध्यान में रखते हुए लोग उनके दर्शन और आशीर्वाद के लिए पूजा करते हैं।