spiritual

Diwali 2023 : 12 नवंबर को मनाया जाएगा दीपोत्सव

दिवाली 2023 की तिथि 12 नवंबर है। यह त्योहार हर साल कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा और उपासना की जाती है। दिवाली का मुहूर्त सुबह 5:44 से शाम 7:57 तक होगा।

इस वर्ष कब है दिवाली ?

साल 2023 में दिवाली की अधिकतम तिथि 12 नवंबर और उच्चतम तिथि 13 नवंबर है। दिवाली की पूजा रात के समय अमावस्या के समय की जाती है, लेकिन सनातन शास्त्र में उदयातिथि का महत्व भी होता है जिसके अनुसार दिवाली का प्रारंभ 12 नवंबर को भी किया जा सकता है। दिवाली के दिन धन की देवी मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है।

दिवाली के मुहूर्त के लिए, इसे बेहतर होगा कि आप किसी ज्योतिष या पंडित से संपर्क करें जो आपकी स्थानीय समय-व्यवस्था के अनुसार उपयुक्त मुहूर्त बता सकते हैं। धनतेरस का त्योहार, जो दिवाली से दो दिन पहले होता है, भी धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा के लिए अनुकूल होता है।

क्यों मनाते है दिवाली का त्यौहार ?

दीपावली भारत के सभी धर्मों के लोगों द्वारा मनाया जाता है। हिंदू धर्म में दीपावली को श्री राम चन्द्र जी की वापसी के अवसर के रूप में भी माना जाता है। इस त्यौहार के दौरान लोग अपने घरों में दीपकों की श्रृंखला लगाते हैं और अपने घरों को रोशन करते हैं। इसके साथ ही भगवान गणेश और लक्ष्मी की पूजा की जाती है और धन और समृद्धि की कामना की जाती है। दीपावली के दौरान लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिठाइयों और विभिन्न खाने-पीने का आनंद लेते हैं।

दिवाली मंत्र

दिवाली के अवसर पर कुछ मंत्रों का जाप भी किया जाता है जैसे “ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः” और “ॐ गं गणपतये नमः”।

श्री राम 14 वर्ष के बाद लौटे थे अयोध्या

दीप पर्व या दिवाली मनाने के बहुत से कारण हैं जिनमें से यह दो कहानियां दो मुख्य कारण हैं। दीप पर्व श्रीराम और सीता के लौटने पर अयोध्या नगरी में आयोजित की जाने वाली उत्सव है। सीता और श्रीराम के स्वागत के लिए, उनकी प्रजा ने मकानों की सफाई की और दीप जलाकर उनका स्वागत किया।

भगवान् श्री कृष्ण ने किया था नरकासुर का वध

दूसरी कथा में दीप पर्व का मुख्य कारण है भगवान कृष्ण द्वारा राक्षस नरकासुर के वध से प्रजा को मुक्ति दिलाने का अनुभव।

दीप पर्व के अलावा भारत के विभिन्न हिस्सों में दीवाली के मनाने के अलग-अलग परंपराएं हैं। उत्तर भारत में दीपावली का उत्सव गुजिया, मावा और पाक खाकर और मिठाइयां बांटकर मनाया जाता है। दक्षिण भारत में दीपावली का उत्सव आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में पहले दिन लक्ष्मी पूजा के साथ शुरू होता है और दूसरे दिन दीवाली मनाई जाती है। पूर्वोत्तर भारत में दीपावली का उत्सव असम में मनाया जाता है,

दीपक की रोशनी अंधकार को करती है दूर

दीपक की रोशनी धार्मिक तथा मानसिक शुद्धि का प्रतीक होती है। दीपक की रोशनी अंधकार को दूर करती है और उजाले का प्रतीक होती है। यह हमें एक सकारात्मक भावना का अनुभव कराती है और हमें उत्साहित करती है कि हमें भी दूसरों की मदद करनी चाहिए। इसलिए, दीपावली उत्सव के दौरान हम अपने परिवार, मित्र और जान पहचान वालों के साथ अच्छे रिश्तों को बढ़ाने और संबंधों को मजबूत करने का अवसर भी प्रदान करते हैं।

धार्मिक परंपराओं में दीपावली के अलावा भी दीपक के बहुत सारे उपयोग होते हैं। धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान दीपक जलाया जाता है जो आध्यात्मिक ऊर्जा को जागृत करता है और शांति का सन्देश देता है। धर्मशास्त्रों में दीपक को पूजा और अर्चना का एक अहम हिस्सा माना जाता है।

दीपक को समर्पित अन्य महत्वपूर्ण उत्सवों में शामिल हैं जैसे दुर्गा पूजा, कार्तिक पूर्णिमा, दीपावली, राम नवमी, जन्माष्टमी आदि।

इसके अलावा, अन्य सभ्यताओं में भी दीपक का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, यूनानी और रोमन सभ्यताओं में दीपक को विवाह समारोहों में जलाया जाता था और इसे मौसमी बदलाव के समय घर की रोशनी के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता था।

Buland Chhattisgarh

Show More

Related Articles

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker