क्यों बन रही ये आदिवासी लड़कियां बाइक मैकेनिक ?
Published By- Komal Sen
कुंठा मस्कोले मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के खालवा प्रखंड के एक सुदूर गांव में रहती हैं. खालवा के वन क्षेत्र आदिवासी बहुत हैं।
मसकोले गांव का नाम मामादोह है। इस प्रकार के नाम के बारे में वहां के बुजुर्गो से पता चला की इस क्षेत्र में एक ही तरह के नाम रखने की परंपरा है
यह सिर्फ एक नाम नहीं है, बल्कि यह उन संघर्षों का उदाहरण है, जिनसे अन्य आदिवासी लड़कियों जैसे मस्कोले या उनके समुदाय को अपने दैनिक जीवन में गुजरना पड़ता है।
ये मध्य प्रदेश के वो सुदूर इलाके हैं जहां के लोगों की नियति रोजगार की तलाश में पलायन करना है. इस पलायन से जुड़ी कई कहानियां हैं, जो काम के दौरान उन पर हुए अत्याचारों को बयां करती हैं।
यहां की अधिकांश आबादी के पास इतनी जमीन नहीं है जिससे वे अपने परिवार का भरण पोषण कर सकें। इसलिए परिवार का हर वयस्क सदस्य काम पर निकल जाता है। आसपास के जिलों में मजदूरी मिलती है तो ठीक है, नहीं तो वे महानगरों और अन्य राज्यों में चले जाते हैं।
मध्य प्रदेश के सुदूर इलाकों से लोग रोजगार की तलाश में पलायन करते हैं।
आदिवासी लड़कियां बाइक रिपेयर करना सीख रही हैं।
स्थानीय कार्यकर्ता के सहयोग से दुपहिया वाहनों की मरम्मत का प्रशिक्षण लिया।
पंचायत ने इन बच्चियों को नए गैरेज के लिए जगह देने का प्रस्ताव पारित किया है.