8 अक्टूबर मुंशी प्रेमचन्द पुण्यतिथि..
Published By- Komal Sen
उपन्यासों और कहानियों के सम्राट कहे जाने वाले मुंशी प्रेमचंद का गोरखपुर से गहरा नाता था। उनका बचपन शहर की गलियों में बीता, लेकिन नौकरी के दौरान जब गोरखपुर आए तो उन्होंने शहर के बेतियाहाटा स्थित निकेतन में पांच साल रहकर दो प्रसिद्ध कहानियां लिखी थीं। आपको बता दें कि प्रेम चंद का निधन 8 अक्टूबर 1936 को हुआ था।
धनपत राय ‘मुंशी प्रेमचंद’ का बचपन गोरखपुर के तुर्कमानपुर मोहल्ले में बीता, जब शिक्षा विभाग की नौकरी के दौरान उनका तबादला हो गया, वे 1916 में फिर गोरखपुर आए। उन्होंने बेतियाहाटा के मुंशी प्रेमचंद पार्क में निकेतन को अपना घर बनाया। उसके बाद वह इस निकेतन में तब तक रहे जब तक उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा नहीं दे दिया।
इस्तीफा देने के कारण महात्मा गांधी का प्रभावशाली भाषण था, जो उन्होंने 1921 में बाले मियां के मैदान में आयोजित एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए दिया था। इस्तीफा देने के तीन दिन बाद वे निकेतन छोड़कर वाराणसी चले गए।
मुंशी प्रेमचंद ने अपने बचपन के चार साल गोरखपुर में बिताए। वह पहली बार 1892 में अपने पिता मुंशी अजायबराई के साथ इस शहर में आए थे, जो डाक विभाग में कर्मचारी थे। चार साल के अपने प्रवास के दौरान उन्होंने यहां रावत पाठशाला और मिशन स्कूल से आठवीं कक्षा पास की। इनके अलावा धनपतराय के गोरखपुर में अनौपचारिक शिक्षा के भी केंद्र थे, जिनसे इस महान कथाकार का उदय हुआ।
‘ईदगाह’ और ‘नमक’ दारोगा लिखी
‘ईदगाह’ और ‘नमक का दरोगा’ जैसी प्रसिद्ध कहानियां प्रेमचंद ने बेतियाहाटा में निकेतन प्रवास के दौरान लिखी थीं। उन्होंने हजरत मुबारक खान शहीद की दरगाह के सामने ईदगाह से निकेतन के ठीक पीछे ईदगाह की पृष्ठभूमि और राप्ती नदी के घाट से नमक का दरोगा की पृष्ठभूमि प्राप्त की। निकेतन को विरासत मानकर यहां एक पार्क विकसित किया गया और उस पार्क को मुंशी जी का नाम दिया गया।